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16 May 2021 · 1 min read

बरसात और बाढ़

बरसात,
अपने साथ लाती है बाढ़,
उफना जाती हैं शांत बहती नदियाँ,
ताण्डव करने लगती हैं,
किनारों को उदरस्थ करने लगती हैं,
यही नदियाँ,
जो मानव सभ्यता की उद्गम हैं।
गंगा-यमुना-ब्रह्मपुत्र-नर्वदा-कावेरी-महानदी
कोसी-कर्मनाशा……सभी,
डूबाने लगती हैं,
अपने ही वंशजों को।
बेघर हो जाते हैं अगणित लोग,
तैरने लगती हैं लाशें,
टंग जाते हैं पशु-पंछी,
बाढ़ की विभीषिका से जुझ रहे पेड़ों पर,
अहा ! कैसे जहरीले सांप भी बंध जाते हैं,
एकता के सूत्र में,
बना लेते हैं बसेरा,
उन्हीं संक्रटग्रस्त पेड़ों पर,
और फिर
एकाएक पेड़ भी समा जाते हैं
काल के गाल में।
टूट जाते हैं तटबंध,
तोड़ देती हैं नदियाँ सभी मर्यादाएं,
उर्वर धरती बदल जाती है ‘दियारे’ में,
बाढ़ जब आती है,
सावन-भादो के बरसात में।
देखता रह जाता है मनुज,
प्रकृति की इस विनाशलीला को,
असहाय, आक्रांत और निःशेष।
यह पीड़ा लम्बी चलती है,
बाढ़ जब जाती है,
पसर जाती है महामारी,
इस हद से भी गुजर जाती है,
यह बरसात।

7 Likes · 8 Comments · 512 Views
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