बबूल / कीकर
विषय : बबूल/ कीकर
विधा :- मुक्त छंद
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रोगों से लड़ने में इसकी, नही है कोई सानी।
कीकर की महिमा को यारो, जग ने है पहचानी।।
मरूथल में भी शान से रहना, जग को यह सिखलाता।
विपदाओं से लड़ना कैसे, लड़ कर है दिखलाता।।
इसके औषध गुण की यारों, दुनिया लगे दिवानी।
कीकर की महिमा को यारों, जग ने है पहचानी।।
दन्त रोग को धूल चटाकर, इनको स्वस्थ बनाता है।
वात पित्त अरु कफ को यारो, हमसे दूर भगाता है।।
स्वार्थ रहित सर्वस्व लूटा दे, कौन है ऐसा दानी।
कीकर की महिमा को यारो, जग ने है पहचानी।।
कुष्ठ रोग से लड़ना जाने, इस सम कौन है दाता।
पालनकर्ता रहते इसपर, कहते जिन्हें विधाता।।
फिर भी हेय नजर से देखे, मनु करता मनमानी।
कीकर की महिमा को यारो, जग ने है पहचानी।।
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✍️स्वरचित घोषणा पत्र ✍️
मैं पं.संजीव शुक्ल “सचिन” यह घोषणा करता हूँ कि प्रतियोगिता में भेजी गई मेरी यह रचना पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित है।
[पं.संजीव शुक्ल “सचिन”]