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19 Jul 2016 · 1 min read

कर के मजदूरी बचपन निकलता रहा

कर के मजदूरी बचपन निकलता रहा
खेलने के लिए वो तरसता रहा

चाहिए थी कलम पर मिली चाकरी
बोझ बचपन उठा के सिसकता रहा

रूप वैसे तो बच्चा है भगवान का
पर गरीबी में भूखा तड़पता रहा

धन गरीबों को कागज़ पे मिलता बहुत
पर तिजोरी में नेता की भरता रहा

बाल अपराध भी इतने अब बढ़ गए
‘अर्चना’ देख दिल बस दहलता रहा

डॉ अर्चना गुप्ता

2 Comments · 815 Views
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