बनों जिम्मेदार
लगती नहीं
अच्छी
बंजर भूमि
बनो उत्पादक
दो योगदान
देश के लिए
बनो सहारा
माता पिता के
बनो भाग्य-विधाता
परिवार के
करना ही है तो
करो कुछ ऐसा
बह जाऐ
जल धाराएँ
रेगिस्तान में
है नहीं
कुछ भी
असंभव
जीवन में
रहे कृतसंकल्प
मेहनती
लगनशील
तो है नहीं
बंजर
कहीं भी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल