बनारसी पान लिए
गुमसुम से बैठे हो क्यों , हाथ में बनारसी पान लिए।
कयामत की बला तुम लगती हो ,हाथ में पान- दान लिए।
अगर तुम ऐसे ही बैठी रहोगी पान प्रेमियों के ख़िदमत में ,
सारे पनेड़ी फिरते मिलेंगे ,तेरे पीछे अपनी दुकान लिए।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
गुमसुम से बैठे हो क्यों , हाथ में बनारसी पान लिए।
कयामत की बला तुम लगती हो ,हाथ में पान- दान लिए।
अगर तुम ऐसे ही बैठी रहोगी पान प्रेमियों के ख़िदमत में ,
सारे पनेड़ी फिरते मिलेंगे ,तेरे पीछे अपनी दुकान लिए।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी