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22 Dec 2019 · 1 min read

बदल गए हो दोस्त

सांचे में दुनियादारी के ढ़ल गए हो दोस्त
ऐसा लग रहा है कि बदल गए हो दोस्त
तुम्हारे हर कदम को सराहा सदा मैंने
मेरे कदमों से भला क्यों जल गए हो दोस्त
कल तलक न रंज कोई न थी कोई चोट
न कोई शिकवे गिले थे न कोई भी खोट
राजी हम सदा थे सब रस्में निभाने को
नाज अपनी दोस्ती पर था जमाने को
बंधन से दोस्ती की क्यों निकल गए हो दोस्त
ऐसा लग रहा है कि बदल गए हो दोस्त
इस दोस्ती से बढ़ के कोई ख्वाहिश ही न थी
भरोसा था शक की कोई गुंजाईश ही न थी
कहते थे तुम ये साथ अपना आसमानी है
चट्टान हैं हम दोस्ती अपनी चट्टानी है
चट्टान थे तो ऐसे क्यों पिघल गए हो दोस्त
ऐसा लग रहा है कि बदल गए हो दोस्त
मुंह मोड़ कर के राह तुमने ऐसी दिखाई
क्या कहूं मतभेद या इसे फिर बेवफाई
होके मुझसे बेखबर आजाद तू रहे
दोस्त मेरे हर ओर से आबाद तू रहे
हो अब मेरी आंखों से तुम ओझल गए हो दोस्त
ऐसा लग रहा है कि बदल गए हो दोस्त
ऐसा लग रहा है कि बदल गए हो दोस्त

विक्रम कुमार
मनोरा , वैशाली

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Comments · 459 Views
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