बदले की सरकारें
भारत 1947 में विदेशी गुलामी से स्वतंत्र हुआ और फिर इस देश को नियम बद्ध करने के लिए संविधान का निर्माण किया। इस संविधान का निर्माण केवल एक धर्म एक जाति एक क्षेत्र और एक संस्कृति के लोगो ने नही किया बल्कि देश के लगभग प्रत्येक समुदाय और संकृति का इसमें पूरा योगदान था, उनके विचार थे और विस्वास भी । इस देश की जनता पुनः किसी के हाथों की कठपुतली ना बन जाय और कोई विदेशी या देशी जनता को कमजोर कर उनपर तानासाही लागू ना कर सके और देश के सम्पूर्ण संसाधनों का अपने तक ही प्रयोग सिमित ना कर दे , इसलिए देश को राजनितिक आधार पर गणतंत्र एवं लोकतांत्रिक बनाया । इसलिए देश की समस्त शक्ति नियमबद्ध कर जनता के हाथों में सौंप दी। अर्थात जनता को ही इस देश का सर्वे सर्वा घोसित किया । जनता अपने इस अधिकार का प्रयोग कर अपना नेतृत्व निर्धारित करती है और अपनी शक्ति का हस्तांतरण करती है। फिर जनता का नेतृत्व उस शक्ति का प्रयोग इस प्रकार करता है कि जनता का सम्पूर्ण विकास हो आर्थिक,राजनितिक,सांकृतिक ,न्यायिक आदि ।
वास्तव में देखा जाय तो इस देश का यही दुर्भाग्य है कि संविधान के अनुरूप कानून का पालन नही होता। कोई सरकार अल्पसंख्यक की राजनीती करती है तो कोई सरकार बहुसंख्यक की, कोई जाति की तो कोई समुदाय की और फिर अपने अपने विरोधी बनाकर एक दूसरे पर अन्याय करते है , कानून का प्रयोग अपने अनुसार करते है जिसमे प्रशासन उनका पूरा सहयोग करता है और आजकल तो मीडिया भी। एक तरह से देखा जाय तो भिन्न भिन्न सरकारों द्वारा देश में बदले की सरकार का गठन किया जाता है जो अपने स्वार्थ और समर्थको के लिए अपने विरोधियो पर खुले तौर पर अन्याय करते है। कोई भी सरकार ये नही बताती कि विरोधी समुदाय ने ये गलती की किन्तु हम ऐसी गलती नही करेंगे क्योंकि ये संविधान विरुद्ध है। हम इस प्रकार काम करेंगे जो निष्पक्ष होगा कानून बद्ध होगा । यही कारण है कि किसी भी समुदाय को उसके द्वारा किए गए अन्याय का भान ही नही होता केबल पुनः शक्ति पाने का इतंजार रहता है , कि हमारी सरकार आएगी तो हम इसका बदला लेंगे। अर्थात ऐसे ही बदले की सरकारों का गठन भारत में होता रहा है जिसमे पता ही नही चला कि गलती क्या थी जिससे भविष्य में गलती दोहराई ना जाए। आख़िरकार इसकी कीमत केबल वोट देने बाला ही चुकाता है वोट पाने बाला तो कभी नहीं।
कोई सरकार ऐसी नही हुई जिसने कहा हो कि ना में अल्पसंख्यक हूँ ना में बहुसंख्यक ना में जाति हूँ ना में धर्म।मैं एक इस देश के नागरिको द्वारा चुनी हुई सरकार हूँ। जिसका काम है नागरिकों का सम्पूर्ण चहुमुखी विकास और समानता के स्तर पर निष्पक्ष न्याय उपलब्ध कराना ।
यही अंतिम सूत्र भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिया था , जिसके बाद ही अर्जुन कर्म करने के लिए सशक्त हुआ अन्यथा उसका विस्वास स्थिर नही हुआ।