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2 Nov 2018 · 1 min read

बदलेगी किसी दिन तो तक़दीर हमारी भी

ग़ज़ल – (बह्र – – हज़ज मुसम्मन अख़रव मक्फूफ़ मक्फूफ़मुख़न्नक)

बदलेगी किसी दिन तो तकदीर हमारी भी।
अख़बार में भी होगी तस्वीर हमारी भी।।

अब वाह भी पायेंगे और दाद भी पायेंगे।
सब लोग पढ़ेंगे जब तहरीर हमारी भी।।

आदाबे सुख़न तुमको इक रोज़ सिखायेंगे।
महफ़िल में कभी होगी तक़रीर हमारी भी।।

अल्फ़ाज़ हमारे भी शोलों को हवा देंगे।
होगा ये क़लम इक दिन शमशीर हमारी भी।।

पैरों में रिवायत की बेड़ी तो लगी लेकिन ।
टूटेगी किसी दिन तो जंज़ीर हमारी भी।।

पहलू में सनम के सब बैठे हैं बने राँझा ।
बाहों में कभी होगी इक हीर हमारी भी। ।

तुमको ही मुबारक हो ये मह्ल “अनीश” अब तो।
कल होगी हवेली तो तामीर हमारी भी। ।
—-अनीश शाह 8319681285

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