बदलता समय,बदलते हालात,पर न बदलता नजरिया
७८कि बाढ से लेकर,९१ कि कांपती धरती तक,
एक दशक से अधिक समय बीत गया,
सोचें जरा हम,इस बीच क्या नहीं बदला,
जो तब चलना भी नहीं,सीखे थे,
वह आज दौड लगा रहे हैं,और जो तरुणाई लिए थे,
वह आज अपनी झुरियों को सहलाते नजर आते हैं
बाल काले से सफेद हो गये,
इतना कुछ बदल गया,इस बीते दशक के दौर में,
पर अगर कुछ नहीं,बदला तो ,
गरीबों का नसीब नही बदला,
अफसरों का तौर तरीका,नही बदला,
इनके सोचने का नजरिया नही बदला,
इन्हे बदलने कि चाह में,कइ सरकारें बदल गई,
सरकार चलाने वालों कि लाल बत्ती कि कारें बदल गई,अगर नहीं बदले तो इनके सितारे नही बदले,
और जो न बदला वह उनका हौसला नही बदला,
जो करते हैं संघर्ष दुसरों के जीवन में बदलाव को
वह जो संघर्षशील हैं,समर्पित हैं, बदलने को हालात,उन जन चेतकों के वादे नहीं बदले,
इनके संघर्षों के मादे नहीं,बदले,इरादे नही बदले,
उनकी सोच और इनकी परिस्थितियां,
तब भी वही थी,आज भी वही हैं,
बान्धो के निर्माण करने वालों से लेकर,
बान्धों का ही बिरोध करने वालों के मध्य,
आज भी जारी है यह जंग,और कल भी रहेगी,
यह निर्माण के पीछे,निर्वाण को नहीं देखते,
और एक यह हैं,जो विकास के साथ विनास देखते हैं
निर्माण भौतिक सुख साधनो का,सुविधाओं का,
विनास मानव जाति का,
खेत खलियांन से लेकर,हरि भरी हरियाली का,
यह स्वपन्न बेचते हैं, खुशहाली का❗
वह स्वप्नदृष्टा हैं,देखते हैंअहित मानवजाति का,
इन्हे पाना है मुकाम,सरकारी लक्ष्यों का,
चाहे,इसके लिए कोई उजडे,मरे,या मिट जाये,
वह सोचते हैं हित मानव जाति का,
ये अफसर हैं जो अवसर के बाद बदल जाते हैं नही रहता है मलाल कुछ होने न होने का,
वह मानवता के दूत हैं,मर मिटेंगें इसी राह में,
इतिहास गवाह है,गोली खायी थी गाधीं जी ने।
अहिंसा कि चाह में,
यह त्रासदियाँ हमें भोगनी ही हैं,
क्योंकि,हम सिर्फ अपने हित तक ही सोचने लगे है
समेट ली है हमने पुरी दुनिया,अपने परिवार तक,
और बाहर कि दुनिया को देखने के लिए,
हम जोड तोड और होड में खडे हैं,
मानव हित,देश हित,नैतिकता जैसे विचारों को छोडे, अब तो बर्षों हो गये,
इस लिए भी यह जंग जारी है,और जारी रहेगी,
ऐसे ही इक्के दुक्के, लोगों के कारण,
जो निजहित को छोड,हमसे बहुत उपर उठ चुके।