बदनसीब साल 2020
कैसे कहूँ मैं शुक्रिया
जाते हुए इस वर्ष का
बीज इसने बो दिया
अशांति के वृक्ष का
हर तरफ हाहाकार था
जाति का धर्म का
राजनितिक कर्म का
हो रहा अत्याचार था
आजाद थी मोहब्बत
उसको भी जकड़ दिया
मजहबी नाम पर
हवा को भी कैद कर दिया
जातिवाद बढ़ने लगा
फिर मनु जगने लगा
हाथ में कोड़ा लिए
सामंत कब्र से उठने लगा ।
डिग्रीयां जलने लगी
उम्मीदें फाँसी चढ़ने लगी
युवा दिशाहीन हो गया
जय जयकार में गुमसुदा गया
लोळतंत्र के स्तम्भ ढह गए
लोभ लालच की बाढ़ में
झूठ और डर आगे बढ़ गए
देव की क्षत्रछाह में
हर तरफ शोर था
नफ़रती खौफ था
विद्वान भूमिगत हो गए
साहित्यकार भाट हो गए ।
जो बचा था वो भी खो दिया
प्रकृति ने भी बदला लिया
साँसे भी गिनने लगे
रिस्ते दूर सोने लगे
बहाना मजबूत हो गया
अर्थव्यवस्था निगल गया
मनमानी बढ़ने लगी
तानासाही संविधान गढ़ने लगी ।
जवान झण्डे में सो गया
दुश्मन सीमा पर पहाड़ हो गया
अन्नदाता जल उठा
खेत आतंक का रूप हो गया ।
कैसे करूँ मैं शुक्रिया
इस बेअदब साल का
इस बदनसीब साल का …..