— बच्चे भी हैं परिंदों जैसे —
जो कल था
वो अब आज साथ नही है
जो आज साथ है
वो शायद कल नही होगा
हो गए हैं अब
बच्चों के साथ
परिंदों जैसे रिश्ते
साथ रहते हैं
बड़े हो जाते हैं
फिर उड़ जाते हैं
छोड़ के उस आशियाँ को
जहाँ से पंख निकले
उड़ना सीखा
हवा लगी
कुछ बहके
कुछ सपने बुने
निकल लिए
नई मंजिल की तरफ
परिंदों के जैसे
उम्मीद को जो पाल लेता
उनको दुःख दर्द
रात दिन सताया करते हैं
न जाने ऐसे माँ बाप हैं
क्यूं उम्मीद से जिया करते हैं
सबक तो वो छोटा सा
परिंदा सब को दे जाता है
बस समझ किसी किसी के
ही तो आता है
जहाँ उड़ने की शक्ति मिली
फिर वो कहाँ नजर आते हैं
सच कहा है दोस्तों
बच्चे सब अब
परिंदों के जैसे ही होते हैं
कहीं याद आ गयी
तो आ जायेंगे मिलने
थोड़ी सी परिंदों से
यह समझ अलग होती है
नही तो अकेले में
एक माँ की ममता तो
सुबक सुबक कर रोती है
पैदा किया था
गोदी में खिलाया था
चलना सीखाया था
खाना पीना सीखाया था
खुद दुःख सह कर
उस को आगे बढ़ना बताया था
इसीलिए माँ की ममता रोती है
परिंदे कहाँ जल्दी वापिस आते हैं
फिर अंत में यही सपना संजोती है
बच्चे सच अब परिंदे हैं
बड़े होते हैं, उड़ जाते हैं !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ