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21 Jul 2020 · 1 min read

बचपन

चारदिवारी में कैद
अक्सर मुर्झा जातीं हैं
नन्ही कलियाँ
की बचपन डरा सहमा सा
झांकता दीवारों के उस पार
देखता है रंगीन तितलियां
खूबसूरत फूल
उगता, डूबता सूरज
टिमटिमाते जुगनू
पर मन मसोस कर रह जाता है कि
उसकी हदों के पार
जो दुनियाँ है
उसे जादुई सी लगती है
और आते जाते लोग
अजूबे
हर आहट पैदा करती है
खौफ़
और नन्ही कलियाँ
समेट कर अपनी पंखुड़ियां
छुप जातीं हैं चुपचाप
की बचपन अब बचपन नहीं
गुनाह हो
या वहशियों के हाथों का खिलौना

Language: Hindi
7 Likes · 5 Comments · 413 Views
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