बचपन
” वचपन”
यादें वन गये वो पल
बिताए बचपन में थे जो कल
पीछे मुड के देखूं जो
वह सुनहरे पल
कव वीत गया वह कल ।
वह इन्द्रधनुष से खेलना
वह वारिस मेंभीगना
बादलों सगं दोडना
वह रेत पर रेलना
वह बिजली से डरना
फिर कीचड़ मे पडना
वह चप्पल का टूटना
और नाले मे वहना
मार के डर से
घर में झूठ कहना ।
और पडे जब मार
तो सव कुछ सच कहना
तब दर्द भी सहना
पर कल फिर
चोरी से निकलना
वारिस में नहाना ।
कहां गये वह दिन?
कहां गया जमाना
वह दोस्तों सगं खेलना
दोस्तों सगं नहाना।
डा. कुशल कटोच