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14 Mar 2019 · 1 min read

बचपन लौटा दो

सुबह से शाम होने आ गई थी झुरियों से भरे चेहरे वाला वह आदमी अपनी छोटी बच्ची को लिए डमरू बजाते हुए घूम रहा था पर उसको शहर में कही भी बच्चों का हुजूम दिखाई नही दे रहा था जहाँ रस्सी पर अपनी बेटी को चलाने का खेल दिखा कर कुछ पैसे इकट्ठे कर सके ।
कई जगह तो शौर होने का वास्ता दे कर , सोसाईटी के गार्डो ने उसे दुत्कार कर भगा भी दिया था ।

वह खुद ही बडबडाते हुए आगे बढ़ गया :

” आजकल शहरों के बच्चों का बचपन मोबाइल में गुजर रहा है , उसी पर खेल देखते रहते है , घर से बाहर निकलते ही नहीं है । बचपन क्या होता है ?
उन्हें मालूम ही नहीं है । खैर ”

अब वह झुग्गियो के पास आ गया । कई बच्चे उसके पीछे पीछे आ गये । उसने बान्स के ऊपर रस्सी बांधी और उसकी बेटी बहादुरी से उस पर चढ़ गयी और बिना सहारे के यहाँ से वहां चलने लगी । सब ताली बजा कर उसका उत्साह बढ़ा रहे थे ।

इस बीच घरों से औरतें रोटी सब्जी और एक दो रूपये ले कर आ गयी ।

अब उस आदमी ने अपना सामान बटौरा और चल दिया ।
साथ ही उसने हाथ उठा कर आसमान की तरफ देखा और दुआ मांगते हुए बोला :

” या खुदा बच्चों का बचपन लौटा दे, ये बहुत बेशकीमती है । ”

और उसकी बेटी ने भी आसमान की तरफ देख कर
” आमीन ” कहा ।

स्वलिखित

लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल

Language: Hindi
1 Like · 412 Views
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