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29 Jun 2017 · 1 min read

बचपन की बारिश

वर्षा की फुहारों में मन करता है
रिमझिम के गीत गाते बिना छाते सडको पर दौड़ने का
घटाओ से घिरे बादलो को छूने का
अठखेलिया करती नटखट पवन के संग खेलने का
मेघ गर्जन करते बादल,चुंधियाती बिजलियों के
साथ धरती पर बिछी हरियाली की चादर को छूने का
घने अंधियारे मे मन को रोमांचित करने का
मंद मंद अलसाई धूप को गले लगाने का
आकांषये तो बहुत है बचपन की यादों लिपटने का
वास्तविक जीवन रोकता है उन्मुक्त जीवन जीने को
कितना खोया है बड़े हो कर

डॉ सत्येन्द्र कुमार अग्रवाल

Language: Hindi
1 Comment · 439 Views
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