बचपन कितना सलोना था
बचपन कितना सलोना था,
पर मैं न अकेला था,
मिट्टी से यारी थी,
धूल बड़ी प्यारी थी,
घर था खुला गगन ,
कितने थे हम मगन,
चिडियों का चहकना,
फूलों का महकना,
बारिश का बरसना,
हमारा मचलना,
यही था बचपना,
पानी मे बहाना कश्ती,
यही थी हमारी हस्ती,
बैलगाड़ी पर जब बैठते,
राजा की सवारी सोचते,
पत्ते पत्ते को पहचानते,
जानवरो से स्नेह जताते,
गाँव मेरा था संसार,
बचपन मेरा समंदर,
समय था अभाव वाला,
प्रेम स्नेह के भाव वाला,
मन नभ के तारे गिनता था,
सुकून भरी नींद लेता था,
आम, बैर, सीताफल खाते थे,
हम शुद्ध हवा में रहते थे,
जंगल जंगल घूमा करते थे,
प्राकृति के नजारे निहारते थे,
मित्र मिलन हर शाम होता था,
खेल खेल में हर काम होता था,
बचपन कितना प्यारा होता ,
हर सुख से निराला होता ,
।।।जेपीएल।।।