Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Jul 2017 · 2 min read

-बचपन का मेला

मेले के जीवन से एकदम विपरित
बचपन में था मैं भोला – सयाना।
मेला सभी को सौन्दर्य से लुटता
कहते सब हुशयारी का जमाना।।

जब गांव-गली में मेले के आने से,
चकाचौंध खुब ओर चढ- बढी।
मैंने कहां माँ से मुझे जाना हैं तो,,
माँ की दिक्कते सर पे बढ-चढी।।

माँ से पैसे को बोला मेले के लिए,
क्योंकि मन जानेंको मेले में आतुर था।
चार अट्ठनी का मां ने इंतजाम किया,,
उनशे मन खुशियों से भरपूर था।।

बडभया के मेले में साथ जाके,
चार अट्ठनी को लेकर खुश रहा।
चार अट्ठनी से ज्यादा कुछ न आता,,
बस देख नजारों को लौट-पौट रहा।।

जब मेलें में लेने का मन हुआ,
जेब में आनें खुब समझ रहा।
जब खिलौने का भाव पुछा तो,,
चेहरे की खुशियों का रवि ग्रस्त रहा।।

भया ने हाथ पकडकर के मुझे,
झुलों पर झुलते लोग बतायें।
कलाकारियों के जादू दिखाकर,,
मेले में खुशियों के फुल खिलायें।।

जेब में फिर से उन अट्ठनियों को,
बहूतायत में ओर टटोल रहा।
क्युंकी मन ही मन सपनों में ,
पुरे मेले को खरीदने की सोच रहा।।

पता न था नादानी में मुझको की,
इन आनों में कुछ ज्यादा न आएगा।
मेलें में सामान के भाव पुछकर,,
खाली हाथ और इच्छा दफनाएगा।।

जब दुर से पानी पुरी को देखा तो,
खाने की इच्छा जाहिर हूई।
सोच रहा मन की इन अट्ठनियों से,,
पेट भरने की अच्छी भरपाई।।

जब भाव पुछा उसने कहां की,
दो अट्ठनियों में पांच पुरी आयेगी।
मन ही मन सोचा की इससे तो,,
पेट की भूख अधूरी रह जायेंगी।।

मेले में कुछ खाया – पिया नहीं,
बस मेले के सौन्दर्य से निहाल रहा।
और न खिलौने खरीदे नही झुलें में झुला,
चेहरे पर सौन्दर्य अंतरिय भाव रहा।।

बडे भया ने एक बात कहीं रणजीत,
अब तों लुट-खरीद का मेला होंता हैं।
इस भीड चकाचौंध में कुछ नहीं,,
केवल मेला तो खुशियों का होता हैं।।

रणजीत सिंह रणदेव चारण
मुण्डकोशियां

Language: Hindi
859 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
रेशम की डोरी का
रेशम की डोरी का
Dr fauzia Naseem shad
टिक टिक टिक
टिक टिक टिक
Ghanshyam Poddar
" तितलियांँ"
Yogendra Chaturwedi
“BE YOURSELF TALENTED SO THAT PEOPLE APPRECIATE YOU THEMSELVES”
“BE YOURSELF TALENTED SO THAT PEOPLE APPRECIATE YOU THEMSELVES”
DrLakshman Jha Parimal
रंगमंच
रंगमंच
लक्ष्मी सिंह
गरिमामय प्रतिफल
गरिमामय प्रतिफल
Shyam Sundar Subramanian
Destiny's epic style.
Destiny's epic style.
Manisha Manjari
आ गए आसमाॅ॑ के परिंदे
आ गए आसमाॅ॑ के परिंदे
VINOD CHAUHAN
पता ही नहीं चलता यार
पता ही नहीं चलता यार
पूर्वार्थ
Maine Dekha Hai Apne Bachpan Ko...!
Maine Dekha Hai Apne Bachpan Ko...!
Srishty Bansal
गैस कांड की बरसी
गैस कांड की बरसी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
जो ज़िम्मेदारियों से बंधे होते हैं
जो ज़िम्मेदारियों से बंधे होते हैं
Paras Nath Jha
कुछ लोग बात तो बहुत अच्छे कर लेते हैं, पर उनकी बातों में विश
कुछ लोग बात तो बहुत अच्छे कर लेते हैं, पर उनकी बातों में विश
जय लगन कुमार हैप्पी
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
अंतिम इच्छा
अंतिम इच्छा
Shekhar Chandra Mitra
किसी ने अपनी पत्नी को पढ़ाया और पत्नी ने पढ़ लिखकर उसके साथ धो
किसी ने अपनी पत्नी को पढ़ाया और पत्नी ने पढ़ लिखकर उसके साथ धो
ruby kumari
आंखों से बयां नहीं होते
आंखों से बयां नहीं होते
Harminder Kaur
पता नहीं कुछ लोगों को
पता नहीं कुछ लोगों को
*Author प्रणय प्रभात*
"मोहब्बत"
Dr. Kishan tandon kranti
अफसाने
अफसाने
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
#जगन्नाथपुरी_यात्रा
#जगन्नाथपुरी_यात्रा
Ravi Prakash
रक्षाबंधन का त्यौहार
रक्षाबंधन का त्यौहार
Ram Krishan Rastogi
कभी - कभी सोचता है दिल कि पूछूँ उसकी माँ से,
कभी - कभी सोचता है दिल कि पूछूँ उसकी माँ से,
Madhuyanka Raj
........,
........,
शेखर सिंह
मात पिता
मात पिता
विजय कुमार अग्रवाल
💐प्रेम कौतुक-439💐
💐प्रेम कौतुक-439💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
मूर्ख बनाकर काक को, कोयल परभृत नार।
मूर्ख बनाकर काक को, कोयल परभृत नार।
डॉ.सीमा अग्रवाल
मैंने बार बार सोचा
मैंने बार बार सोचा
Surinder blackpen
2317.पूर्णिका
2317.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
* पानी केरा बुदबुदा *
* पानी केरा बुदबुदा *
DR ARUN KUMAR SHASTRI
Loading...