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10 May 2019 · 1 min read

बचपन और कचौड़ी वाले बाबा का स्नेह

काश उकेर पाती उन सुनहरे पलो को
ज़हन मे बसी स्मृति की स्याही से
आज आंखें नम है
यादो का सैलाब उमड़ पड़ा है
आंखें बन्द कर रही हू
बचपन की तस्वीर बन रही है
बाबा के हाथों मे ज़ननत का स्वाद था
हर एक चीज़ मे माँ जैसा प्यार था
बाबा हर रोज खुश हो जाते थे
“रमन की लल्ली “आयी है बोल्के भीड़ मे भी
कचौड़ी समोसा दे देते थे ,
बेटा पैसे मत दे तेरा पापा दे जाता है
तु बस ले जा, स्कूल को देर हो जाएगी
कह कर काम मे लग जाते थे,
कभी करारी कचौड़ी करके देते थे
समोसा पे भी दही के आलू डाल देते थे,
वो घर का प्यार था ,बाबा की आंखों मे
दुलार था उनके हाथो मे ,
बाबा जहाँ भी चले गये हो मह्फ़ूज़ रहना
अपने बच्चो पे कृपा बनाये रखना !!
आपका लाड़ दुलार को भूल ना पायेगे
जब भी जलाली मे चौक से गुजरेगे
आपको ही पायेगे!! आपको ही पायेगे!!

Language: Hindi
421 Views
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