—बचके था रहना—
शरमा गई वो,घबरा गई वो।
नज़र रब्बा नज़र,टकरा गई जो।।
उलझी पहेली,चली वो घर से।
गुज़री बग़ल से,हँसती गई वो।
शरमा गई……….
भोला चेहरा,ज़ालिम अदाएँ।
नसतर-सी हाय,चलती गई वो।
शरमा गई……….
गुलाबी लब मद,साँपिनी-ज़ुल्फ़े।
शेर कमर लिए,हिलती गई वो।
शरमा गई……….
नयन कजरारे,ज़ादू इशारे।
रुह में बू-सरिस,तरती गई वो।
शरमा गई……….
प्रीतम बचा ना,प्यार से पागल।
मन रूप से रे,हरती गई वो।
***राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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