फैसला
आज न्यायालय वकीलों से खचाखच भरा था। जज साहब अपनी कुर्सी पर विराजमान थे। सरकारी वकील ने पूछा,
बाबूजी आप का बयान दर्ज होगा। आप अपना बयान सशपथ लिखवाये।
बाबूजी ने अत्यंत विनम्रता पूर्वक कहना शुरू किया,
सरकार हमारे पास 6 बीघा जमीन थी। आवास विकास के पास मैंने सन 2001 में खरीदी थी। बाबू मनोज द्विवेदी से 400000 में सौदा तय हुआ था, और बाकायदा जमीन की रजिस्ट्री मेरे नाम दर्ज हुयी,उसमें मेरे साथ दो गवाहों के हस्ताक्षर भी हैं। सरकारी वकील ने कहा -फिर क्या हुआ?
बाबू जी ने कहा- सरकार सन 2002 में यह मुनीम खान नाम का व्यक्ति मेरी जमीन में भैंस बांधने लगा। पूछने पर कहा की हुजूर! हमारे पास जमीन जायदाद नहीं है ,केवल दूध का व्यापार करते हैं। खाली प्लाट देखकर हमने कुछ दिनों के लिये भैंस बांधकर अपना दूध का व्यापार शुरु किया है ।जब आप कहेगें या घर बनवाओगे ,हम अपना कारोबार कहीं और शिफ्ट कर लेगें। आप बड़े हैं, मालिक हैं, अगर आपकी कृपा हो जाए तो हमारे बाल बच्चे पल जाएंगे। सरकारी वकील- फिर?
बाबूजी – फिर क्या हुजूर, हमने दया करके इस मुनीम को अस्थाई तौर पर केवल भैंस पालने की इजाजत दे दी थी। हमने सोचा कि इसकी छोटे-छोटे बाल बच्चे हैं। केवल दूध से ही इसकी रोजी रोटी है ।बाल बच्चे भी पल जाएंगे और जमीन की देखभाल भी हो जाएगी ।बाबूजी कहते कहते थोड़ा रुक गए फिर उन्होंने अपनी बात पूरी की मगर हुजूर, मुनीम तो एहसान फरामोश निकला। एक नंबर का झूठा बदमाश। उसने हमारे प्लाट पर झोपड़ी बनाकर रहना शुरू कर दिया, फिर धीरे-धीरे पक्का निर्माण भी करने लगा। जब हमें सूचना मिली की मुनीम अपना पक्का घर जमीन पर बनवा रहा है ,तो हम परेशान होकर उसके पास पहुंचे। हमारे एतराज करने पर मुनीम कुर्सी लेकर हमें मारने दौड़ा ,और कहा, भाग जाओ अब कभी इस तरफ मुंह नहीं दिखाना। हम तो जान बचाकर किसी तरह भाग आये। फिर कोतवाली में एफ. आई .आर. करा कर आपके पास आये हैं। सरकार हमारे साथ न्याय करें।
सरकारी वकील ने बाबूजी का बयान हस्तलिखित किया। और और प्रतिपक्ष मुनीम के वकील साहबान को जिरह के लिए बुलाया ।
इस प्रक्रिया में अब तक 2 वर्ष व्यतीत हो चुके थे। विश्वास था ,कि, आज सुनवाई पूरी हो जाएगी ,थोड़ा विलंब से प्रतिवादी वकील ने अदालत में पहुंचकर जज साहब का अभिवादन किया,और विलंब से आने की माफी माँगी। और जिरह हेतु बयान की कापी माँगी।प्रतिवादी वकील ने प्रथम प्रश्न पूछा?
आपके पास रजिस्ट्री के सही कागजात हैं ?
बाबूजी ने स्वीकृति में सिर हिलाया और कागजात पेश किये।
जज साहब ने वे कागजात कोर्ट कस्टडीमें परीक्षण करवाने हेतु अपने पास रख लिये।
प्रतिवादी वकील ने दूसरा सवाल पूछा- आपने जमीन मुनीम को क्यों दी ?
बाबूजी सरलता से कहा -हुजूर! मैंने तो केवल पालने की अनुमति दीथी। जिससे इसके बाल बच्चे पल सके । किंतु, इस अहसान फरामोश ने अपनी जबान का कोई मोल नहीं रखा। उल्टे हमारे प्लाट पर कब्जा कर पक्की झोपड़ी बनवा रहा है। मना करने पर हिंसक हो उठता है। कई बार मारने दौड़ा है।
प्रतिवादी वकील ने अंतिम प्रश्न किया -अब आप क्या चाहते हैं?
बाबू जी ने कहा -सरकार हमें हमारी जमीन वापस दिलवा दीजिये। इसे हमारी जमीन से बेदखल करवा दीजिये।
जिरह खत्म होने के बाद जज साहब ने अगली तारीख को फैसला सुनाने का निर्णय सुनाया। फैसले के दिन वादी और प्रतिवादी दोनों पक्षों का उपस्थित रहना आवश्यक होता है। 10:00 बजे कोर्ट बैठ गई। और सबसे पहले बाबूजी के मुकदमे का फैसला आना था। सब श्वास बांधे कोर्ट में खड़े थे।
जज साहब ने सभी गवाहों और सबूतों के प्रकाश में फैसला बाबूजी के पक्ष में सुनाया। और 1 सप्ताह के अंदर मुनीम को अपना डेरा उठाने का निर्णय सुना दिया।
किंतु विवाद का पटाक्षेप अभी नहीं हुआ था ।जब बाबूजी जमीन बेदखल कराने कोर्ट के आदेशानुसार पहुंचे ,तो मुनीम ने कोर्ट का आदेश मानने से इंकार कर दिया। अब बाबूजी पुनः दरोगा के पास गये।निवेदन किया कि आदेश अनुसार हमारी जमीन हमें दिलायी जाये। आदेश देखकर दरोगा ने कुछ सिपाही बाबू जी के साथ प्लाट पर भेजें व निर्माण कार्य ध्वस्त कराकर मुनीम को बेदखल करने को कहा।
पुलिस वालों ने निर्माण कार्य दिन के दोपहर में ध्वस्त कर दिया ,और मुनीम के झोपड़े को उखाड़ फेंका।
बाबूजी अब संतुष्ट होकर घर पहुंचे, और खुशी-खुशी यह बात घर वालों को बतायी, कि जमीन पर हमारा कब्जा हो गया है। वाकई यह अत्यंत खुशी की खबर थी ।
किंतु, जब प्रसन्न मुद्रा में विजयी भाव से बाबूजी पुनः प्रातः टहलते हुए अपने प्लाट पर पहुंचे तो देखते हैं कि प्लाट पर मुनीम ने पक्की दीवार खड़ी कर दी है। यह देखकर बाबूजी भौचक्का रह गये। और पुनः दरोगा के पास सूचना दी ,कि मुनीम ने अवैध निर्माण पुनः प्रारंभ कर दिया है।
दरोगा ने भी तुरंत कुछ पुलिसवालों को परीक्षण व कार्रवायी करने का निर्देश दिया। पुलिस वालों ने मुनीमखाँ को डांटा और अवैध निर्माण गिराने हेतु निर्देश दिये। एक बार फिर दीवार ढहायी गई ।
अब तक बाबूजी समझ चुके थे, कि ,मुनीम ऐसे मानने वाला नहीं है। और किसी को देखभाल के लिए लगाना खतरे से खाली नहीं है ।पता नहीं ,यह सिरफिरा क्या घटना घटित कर दे ।
बाबूजी अगले दिन प्रातः पुनः अपने प्लाट पर पहुंचे और पाया कि मुनीम अपनी हठ पर अड़ा हुआ है ,और उसने फिर पक्की दीवार का निर्माण रातों-रात कर दिया है ।
अब बाबूजी ने माथा पकड़ लिया। शरीर में काटो तो खून नहीं था। उन्हें पता चल गया था ,कि उन्हें अपनी जमीन का मोल चाहिये, तो इसे किसी रसूखदार व्यक्ति को बेचना पड़ेगा। अब बाजी उनके हाथ से निकल चुकी थी ।
कोर्ट कचहरी करते-करते कई वर्ष बीत जायेंगे, नतीजा शून्य ही रहने वाला है। शहर के एक सेठ जी, विवादित जमीन खरीदने के लिए राजी हो गये। बाबूजी की अरमानों भरी जमीन कौड़ी के मोल बिक गई, किंतु ,बाबूजी को मुनीम की कुसंगत व विवाद से राहत मिल गयी। सेठ जी ने बलपूर्वक मुनीम खाँ से जमीन खाली करा ली ,और उसकी रजिस्ट्री भी अपने नाम करा कर निश्चिंत हो गये।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव “प्रेम” वरिष्ठ परामर्शदाता, रक्त कोष प्रभारी, जिला चिकित्सालय सीतापुर।उ.प्र.