**फैशन फैशन वाह री फैशन**
फैशन फैशन वाह री फैशन,
दौड़ रही तू कैसी दनादन।
ना तुझे संस्कृति सम्मान की परवाह,
करती जा रही जो चाहे तेरा मन।।
फैशन फैशन वाह री फैशन ।
आदि मानव असभ्य था, इतिहास हमें पढ़ाया गया।
तू कौन सी सभ्यता दे रही,
दिखा कर अपना तन।
फैशन फैशन वाह री फैशन ।।
जकड़ा तू ने समाज को ऐसे, तड़का लगा के सब में जैसे
कैसे बच पाए हम कर रहे जतन।
फैशन फैशन वाह री फैशन।।
कहां नहीं जादू पहुंची,
खाने-पीने चलने में।
सब में हो गया तेरा ही आगमन,
फैशन फैशन वाह री फैशन।।
माना तू नई है ,यह भी तो सही है,
पौराणिक संस्कृति हो रही ख़तम।
फैशन फैशन वाह री फैशन।।
अनुनय फैशन छोड़ – सृजन की और फिर से दौड़।
इसी के लिए हुआ तेरा जनम ।।
राजेश व्यास अनुनय