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25 Dec 2016 · 1 min read

फूलों सी खिलती हैं अब मुस्कान कहाँ

फूलों सी खिलती हैं अब मुस्कान कहाँ
चिड़ियों के भी पहले जैसे गान कहाँ

आज एक ही बच्चे से परिवार बने
रत्नों जैसे रिश्तों की अब खान कहाँ

पैर बड़ों के छूने की अब रीत नहीं
आँखों में भी शर्म हया या मान कहाँ

मस्ती स्वार्थ दिखावा है अब प्यार सुनो
आज प्यार में गहराई का भान कहाँ

संबंधों औ पैसों का ही नाम चले
आज गुणों को मिलता वो सम्मान कहाँ

चन्दा देकर सिद्ध करें जो काम गलत
कहते हैं व्यापार इसे ये दान कहाँ

हमें बहुत सी बात सिखाता वक़्त सुनो
सिर्फ किताबों से सब मिलता ज्ञान कहाँ

भूले से हो गंगा में वो पाप धुलेँ
दुष्टों पापी का ये गंगा स्नान कहाँ

कदम कदम पर देखो हैं संघर्ष बहुत
मानव जीवन इतना भी आसान कहाँ

आज ‘अर्चना’ पैसा ही भगवान हुआ
रही दिलों में भावों की अब जान कहाँ

डॉ अर्चना गुप्ता
19-10-2015

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