Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Aug 2017 · 10 min read

फ़ौजी बनना कोई मज़ाक नहीं है

हर देश की सीमा होती है, उसके अपने कानून ही उसे अंतराष्ट्रीय स्तर पर एक दर्ज़ा दिलाते हैं ! देश की रक्षा सरहदों पर खड़े जवान करते हैं, देश का चलना उनके लिए होता है, और उनके दिल का धड़कना सिर्फ़ देश के लिए ! जिनकी रगों में देश का ख़ून दौड़ता है उन जवानों को हमारा सलाम !
भारतीय जवान अपने घर-परिवार से इसलिए दूर रहते है ताकि हम अपने घरवालों के साथ सुरक्षित रह सके ! जवानों की शहादत हम नागरिकों के लिए है। नेताओं के ट्वीट के लिए नहीं है। एंकरों की चीख़ के लिए नहीं है।उनकी ललकार नाटकीय है, जब वे मोर्चे पर नहीं है तो ललकार के दम पर मोर्चे पर होने की नौटंकी न करें। इससे शहादत का अपमान होता है। यह शहादत उनके लिए है जो अपने स्तर पर जोखिम उठाते हुए मुल्क की जड़ और ह्रदयविहीन हो चुकी सत्ता को मनुष्य बनाने के लिए पार्टियों और सरकारों से लड़ रहे हैं। अफ़सोस इस बात का है कि नेता बड़ी चालाकी से शहादत के इन गौरवशाली किस्सों से अपना नकली सीना फुलाने लगते हैं। अपनी कमियों पर पर्दा डालने के मौके के रूप में देखने लगते हैं। गुर्राने लगते हैं। दाँत भींचने लगते हैं। जबड़ा तोड़ने लगते हैं। आँख निकालने लगते हैं। वक्त गुज़रते ही शहादत से सामान्य हो जाते हैं। फिर भूल जाते हैं। कोई किसी को सबक नहीं सीखाता है।
आज कोई हमारे लिए जान दे गया है। हमें उनकी शहादत का ख़्याल इसलिए भी है कि कोई हमें पत्थर की दीवार बन जाने के लिए जान नहीं देता है। वहशी बनाने के लिए जान नहीं देता है। वो जान इसलिए देता है कि हम उसके पीछे सोचे, विचारें,बोलें और लिखें। उसके पीछे मुस्कुरायें और दूसरों को हँसाये। उसके मुल्क को बेहतर बनाने के लिए हर पल लड़ें, जिसके लिए वो जान दे गया है। शहादत की आड़ में वो अपनी नाकामी नहीं छिपा सकते जिनके कारण सीमा से बहुत दूर जवानों का परिवार समाज और व्यवस्थाओं की तंगदिली का सामना करता है।
एक आम नागरिक को सैनिक बनाने में लाखो आम नागरिकों के खून पसीने की कमाई लगी होती है और ऐसे एक सैनिक के बलिदान हो जाने पर इटली की विदेशी पोषित गवर्मेंट के नुमाइंदे कहते है की सैनिक तो सेना में भर्ती ही मरने के लिए होता है, सैनिकों की मौत की वजह से पाकिस्तान से वार्ता बंद नहीं की जा सकती ||
आज हम आपको रुबरु करवाते हैं देश के जवानो की जीवनशैली से, उनकी शहादत से , उनके समर्पण से=
सियाचिन,
दुनिया का सबसे ऊंचा रणक्षेत्र है, जहां दुश्मन की गोली से ज्यादा बेरहम मौसम होता है। सियाचिन में भारतीय फौजियों की तैनाती का यह कड़वा सच है। इस बर्फीले रेगिस्तान में जहां कुछ नहीं उगता, वहां सैनिकों की तैनाती का एक दिन का खर्च ही 4 से 8 करोड़ रुपए आता है। फिर भी तीन दशक से यहां भारतीय सेना पाकिस्तान के नापाक इरादों को नाकाम कर रही है। आइए जानते हैं सियाचिन की उन चुनौतियों के बारे में जो दुश्मन की गोली से भी ज्यादा खतरनाक हैं
‘द ट्रिब्यून’ की रिपोर्ट के अनुसार,
सियाचिन की रक्षा करते हुए 1984 से अब तक 869 सैनिकों की मौत हो चुकी है।
सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय फौज की करीब 150 पोस्ट हैं, जिनमें करीब 10 हजार फौजी तैनात रहते हैं। अनुमान है कि सियाचिन की रक्षा पर साल में 1500 करोड़ रुपए खर्च होते हैं।
सियाचिन में अक्सर दिन में तापमान शून्य से 40 डिग्री नीचे और रात में माइनस 70 डिग्री तक चला जाता है।
आमतौर पर एक फौजी की सियाचिन पर सिर्फ 3 महीने के लिए ही तैनाती होती है, लेकिन तीन महीने की तैनाती के लिए भी फौजियों को 5 हफ्ते की खास ट्रेनिंग लेनी पड़ती है।
सियाचिन के लिए फौजियों की पहली ट्रेनिंग कश्मीर के खिल्लनमर्ग के गुज्जर हट में बने हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल से शुरू होती है। इसी स्कूल में सेना के जवानों को बर्फ पर रहने, पहाड़ काट कर ऊंचाई पर चढ़ने की ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग पूरी हो जाने के बाद सैनिकों को सियाचिन ग्लेशियर से पहले बने बेस कैंप के सियाचिन बैटल स्कूल तक ले जाया जाता है।
सियाचिन बैटल स्कूल में पांच हफ्ते की विशेष ट्रेनिंग के बाद सियाचिन की चौकियों पर तैनाती के लिए उन्हें हेलिकॉप्टर से सफर करना पड़ता है। इन चौकियों पर रसद और गोला- बारूद की अपूर्ति भी हेलीकॉप्टर से ही की जाती है। कोई सैनिक बीमार पड़ जाए तो उसे बेस कैंप के अस्पताल में पहुंचाने के लिए भी हेलिकॉप्टर का ही इस्तेमाल किया जाता है।
सियाचिन में तैनाती के तीन महीने के दौरान सैनिकों को नहाने को नहीं मिलता, न वो दाढ़ी बना पाते हैं। हर रात अपनी चौकी के सामने से उन्हें बर्फ हटानी पड़ती है, क्योंकि बर्फ नहीं हटाई जाए तो बर्फ के दबाव से जमीन फटने का खतरा होता है। पानी पीने के लिए बर्फ पिघलानी पड़ती है। सैनिकों के पास एक खास तरह की गोली होती है, जिसे पिघले पानी में डालकर उसे पीने लायक बनाया जाता है।
मुश्किल ट्रेनिंग और जज्बे के बावजूद सैनिकों को हाइपोक्सिया, हाई एल्टीट्यूड एडिमा जैसी बीमारियां हो जाती हैं, जिससे फेफड़ों में पानी भर जाता है, शरीर के अंग सुन्न हो जाते हैं।
सियाचिन में भारतीय फौजों की किलेबंदी इतनी मजबूत है कि पाकिस्तान चाहकर भी इसमें सेंध नहीं लगा सकता। दरअसल, यह सफलता है 1984 के उस मिशन मेघदूत की है, जिसे भारतीय सेना ने सियाचिन पर कब्जे के लिए शुरू किया था। शह और मात के इस खेल में भारत ने पाकिस्तान को जबरदस्त शिकस्त दी।
दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन में भारत और पाकिस्तान की फौजों पिछले तीन दशक से आमने-सामने डटी हुई हैं। 1984 से पहले सियाचिन में यह स्थिति नहीं थी, वहां किसी भी देश की फौज नहीं थी।
1949 के कराची समझौते और 1972 के शिमला समझौते में दोनों देशों के बीच यह तय हुआ था
कि प्वाइंट NJ 9842 के आगे के दुर्गम इलाके में कोई भी देश नियंत्रण की कोशिश नहीं करेगा। तब तक उत्तर में चीन की सीमा की तरफ प्वाइंट NJ 9842 तक ही भारत पाकिस्तान के बीच सीमा चिन्हित थी, लेकिन पाकिस्तान की नीयत खराब होते देर नहीं लगी। उसने इस इलाके में पर्वतारोही दलों को जाने की इजाजत देनी शुरू कर दी, जिसने भारतीय सेना को चौकन्ना कर दिया।
80 के दशक से ही पाकिस्तान ने सियाचिन पर कब्जे की तैयारी शुरू कर दी थी। बर्फीले जीवन के तजुर्बे के लिए 1982 में भारत ने भी अपने जवानों को अंटार्कटिका भेजा। 1984 में पाकिस्तान ने लंदन की कंपनी को बर्फ में काम आने वाले साजो-सामान की सप्लाई का ठेका दिया। भारत ने 13 अप्रैल 1984 को सियाचिन पर कब्जा करने के लिए ऑपरेशन मेघदूत शुरू कर दिया। पाकिस्तान 17 अप्रैल से सियाचिन पर कब्जे का ऑपरेशन शुरू करने वाला था। हालांकि भारत ने तीन दिन पहले ही कार्रवाई कर उसे हैरान कर दिया, लेकिन ये ऑपरेशन आसान नहीं था।
सियाचिन हिमालय के कराकोरम रेंज में है, जो चीन को भारतीय उपमहाद्वीप से अलग करती है। सियाचिन 76 किलोमीटर लंबा दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है। 23 हजार फीट की ऊंचाई पर सियाचिन ग्लेशियर इंद्र नाम की पहाड़ी से शुरू होता है।
सियाचिन ग्लेशियर के 15 किमी पश्चिम में सलतोरो रिज शुरू होता है। सलतोरो रिज तक के इलाके पर भारतीय सेना का नियंत्रण है।
सलतोरो रिज के पश्चिम में ग्योंग ग्लेशियर से पाकिस्तानी सेना का नियंत्रण शुरू होता है।
गुलाम जम्मू कश्मीर
सेना के लिए जम्मू-कश्मीर में साल 2016 बेहद मुश्किल भरा रहा लेकिन 2017 भी मुश्किल साबित हो रहा है। साल 2016 मे वहां सेना के जितने लोग शहीद हुए हैं, उसकी संख्या 2010 के बाद सबसे ज्यादा दर्ज की गई है। 90 के दशक से आतंकवाद की आग में जल रहे जम्मू कश्मीर में 2010 में 52 सैनिक शहीद हुए थे। उसके बाद संख्या काफी कम हो गई थी। 2013 से संख्या बढ़ने लगी लेकिन इस साल अब तक 53 सैनिक शहीद हो चुके हैं।
जम्मू- कश्मीर में सेना की शहादत (आंकडे नवभारत टाइम्स से लिये गये हैं )
2010-52
2011-15
2012-13
2013-31
2014-31
2015-33
2016-53
नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री नहीं बने थे तब वह चीख-चीख कर कहते थे कि, ‘पाकिस्तान को लव लैटर लिखना बंद करना चाहिए और उसको उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए।’ हम सभी भारतीय इस बात से इत्तेफाक रखते है कि, आतंकवादियों को उनको उनकी भाषा में ही जवाब देना चाहिए। क्योंकि हमारे देश के वीर जवानों की जानें बहुत ज्यादा कीमती है और इनको ऐसे ही व्यर्थ नहीं गंवा सकते हैं।
सेना का जीवन किसी तपस्या से कम नहीं है। एक सच्चा सैनिक अपना घर-बार, परिवार और दोस्त-यारों से दूर रहकर जिस निष्ठा और समर्पण के साथ अपना जीवन व्यतीत करता है, उसकी दूसरी मिसाल खोजने से भी नहीं मिलती। लेकिन इसके बावजूद उनके जीवन के बारे में, उनकी तकलीफों, झंझावातों और दुश्वारियों के बारे में बहुत कम लिखा-पढ़ा गया है। यही कारण है कि आज भी उनका जीवन किसी रहस्यमय गाथा से कम नहीं है।
ब्रिगेडियर पीके सिंह ने कहां था कि देश की आन-बान व शान की रक्षा करने में आर्मी के सैनिकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। देश का सैनिक जब कोई विपदा आती है तो अपना बलिदान देने में भी पीछे नहीं हटता है। उन्होंने कहां कि भगवान और फौजी को सब चाहते है। और दोनों को ही बुरे वक्त में याद करते है। ऐसे में देश के सैनिकों की भूमिका को महत्वपूर्ण माना है।
आईये जानते हैं ऐसे ही एक वीर सैनिक के बारे मे
नायक दिगेंद्र कुमार (परस्वाल) (३ जुलाई १९६९) महावीर चक्र विजेता, भारतीय सेना की 2 राज राइफल्स में थे। उन्होंने कारगिल युद्ध के समय जम्मू कश्मीर में तोलोलिंग पहाड़ी की बर्फीली चोटी को मुक्त करवाकर १३ जून १९९९ की सुबह चार बजे तिरंगा लहराते हुए भारत को प्रथम सफलता दिलाई जिसके लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा १५ अगस्त १९९९ को महावीर चक्र से अलंकृत किया गया।
१९९३ में दिगेंद्र की सैनिक टुकड़ी जम्मू-कश्मीर के अशांत इलाके कुपवाडा में तैनात थी। पहाड़ी इलाका होने और स्थानीय लोगों में पकड़ होने के कारण उग्रवादियों को पकड़ना कठिन था। मजीद खान एक दिन कंपनी कमांडर वीरेन्द्र तेवतिया के पास आया और धमकाया कि हमारे खिलाफ कोई कार्यवाही की तो उसके गंभीर दुष्परिणाम होंगे। कर्नल तेवतिया ने सारी बात दिगेंद्र को बताई। दिगेंद्र यह सुन तत्काल मजीद खान के पीछे दौड़े। वह सीधे पहाड़ी पर चढा़ जबकि मजीद खान पहड़ी के घुमावदार रस्ते से ३०० मीटर आगे निकल गया था। दिगेंद्र ने चोटी पर पहुँच कर मजीद खान के हथियार पर गोली चलाई। गोली से उसका पिस्टल दूर जाकर गिरा। दिगेंद्र ने तीन गोलियां चलाकर मजीद खान को ढेर कर दिया। उसे कंधे पर उठाया और मृत शरीर को कर्नल के सम्मुख रखा। कुपवाडा में इस बहादुरी के कार्य के लिए दिगेंद्र कुमार को सेना मैडल दिया गया। दूसरी घटना में जम्मू-कश्मीर में मुसलमानों की पावन स्थली मस्जिद हजरत बल दरगाह पर आतंकवादियों ने कब्जा करलिया था तथा हथियारों का जखीरा जमा कर लिया था। भारतीय सेना ने धावा बोला। दिगेंद्र कुमार और साथियों ने बड़े समझ से ऑपरेशन को सफल बनाया। दिगेंद्र ने आतंकियों के कमांडर को मार गिराया व १४४ उग्रवादियों के हाथ ऊँचे करवाकर बंधक बना लिया। इस सफलता पर १९९४ में दिगेंद्र कुमार को बहादुरी का प्रशंसा पत्र मिला। अक्टूबर 1987 में श्रीलंका में जब उग्रवादियों को खदेड़ने का दायित्व भारतीय सेना को मिला। इस अभियान का नाम था ‘ऑपरेशन ऑफ़ पवन’ जो पवनसुत हनुमान के पराक्रम का प्रतीक था। इस अभियान में दिगेंद्र कुमार सैनिक साथियों के साथ तमिल बहुल एरिया में पेट्रोलिंग कर रहे थे और युद्ध से विजय का आगज किया !
कारगिल युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण काम तोलोलिंग की चोटी पर कब्जा करना था। दिगेंद्र उर्फ़ कोबरा १० जून १९९९ की शाम अपने साथी और सैन्य साज सामान के साथ आगे बढे। कीलें ठोकते गए और रस्से को बांधते हुए १४ घंटे की कठोर साधना के बाद मंजिल पर पहुंचे १२ जून १९९९ को दोपहर ११ बजे जब वे आगे बढ़े तो उनके साथ कमांडो टीम थी, कई सैनिको को खोने के बाद आखिरी मे हिम्मत ना हारते हुए ११ बंकरों में १८ हथगोले फेंके। मेजर अनवर खान अचानक सामने आ गया। दिगेंद्र ने छलांग लगाई और अनवर खान पर झपट्टा मारा। दोनों लुढ़कते-लुढ़कते काफी दूर चले गए। अनवर खान ने भागने की कोशिश की तो उसकी गर्दन पकड़ ली। दिगेंद्र जख्मी था पर मेजर अनवर खान के बाल पकड़ कर डायगर सायानायड से गर्दन काटकर भारत माता की जय-जयकार की। दिगेंद्र पहाड़ी की चोटी पर लड़खडाता हुआ चढा और १३ जून १९९९ को सुबह चार बजे वहां तिरंगा झंडा गाड़ दिया..
गाँव का कोई लड़का जब सेना का जवान बनने का सपना देखता है, तो उसकी सुबह रोज़ 4 बजे होती है । उठते ही वह गांव की पगडंडियों पर दौड़ लगाता है, उम्र यही कोई 16-17 साल की होती है । चेहरे पर मासूमियत होती है, और कंधे पर होती है घर की ज़िम्मेदारी । मध्यम वर्ग का वह लड़का, जो सेना में जाने की तैयारी में दिन-रात एक कर देता है, उसके इस एक सपने से घर में बैठी जवान बहन, बूढ़ी मां और समय के साथ कमज़ोर होते पिता की ढ़ेरों उम्मीदें ही नहीं जुड़ी होती हैं, बल्कि जुड़ा होता है एक सच्चे हिन्दुस्तानी होने का फ़र्ज़ ।
फ़ौजी बनना कोई मज़ाक नहीं है । फौज़ी इस देश की शान है, मान है, और हमारा अभिमान है । देश सेवा के लिए फौजी हमेशा तत्पर रहते हैं । इन्हें न प्रांत से मतलब है और न ही धर्म से, इन्हें तो मतलब है, बस अपने देश से । ऐसे इल्जाम मत लगाओ इन पर, ये सर कटा सकते हैं मगर माँ भारती के दामन पर कोई दाग नहीं लगने देंगे ।
……………..
मुक्तक
” उस नज़र को झुका के ही मानेगें हम
जिस नजर ने धरती माँ पर आँख उठायी है
अपनी ताकत से सर कुचल देंगे हम
आखिरी सांस तक अब ये सौगंध खायी है ”

कविता-
बहुत धोका खा चुके और नहीं खायेगें हम
देश के लिए अमर बलिदानी बन जायेंगे हम !
जिंदगी का हर रूख बदलकर रख देंगें हम
वक्त की आवाज के साथ जुड़ते चलेगे हम !
उठी जो कहर की नज़र ए मेरे वतन तुझ पर
उस नज़र को मिटटी में मिलाकर ही मानेगें हम !
जो कदम ग़ैर का होगा निशाँ तक मिटा देंगे हम
दीवार आयेगी उसे ठोकरों से गिराते जायेगे हम !
हरगीज मिटने नहीं देगें अपनी आजादी को हम
संगीन पर रख माथा शहीद होते जायेगें हम !
अलग नाम – धर्म कुछ भी हो पर एक है हम
दिल से दिल की जोत जलाते ही जायेंगे हम !
जब तक साँस रहेगी देश के लिए जियेगें हम
जन्म लिया इस माटी में पूजेंगे इसे हम !
हम सब पर है उपकार तेरा, ऐ-धरती माँ
हर डाल के फूल तेरी पूजा में लायेगे हम !

Language: Hindi
Tag: लेख
324 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मौत के लिए किसी खंज़र की जरूरत नहीं,
मौत के लिए किसी खंज़र की जरूरत नहीं,
लक्ष्मी सिंह
हँसते गाते हुए
हँसते गाते हुए
Shweta Soni
तेरी उल्फत के वो नज़ारे हमने भी बहुत देखें हैं,
तेरी उल्फत के वो नज़ारे हमने भी बहुत देखें हैं,
manjula chauhan
अब कुछ चलाकिया तो समझ आने लगी है मुझको
अब कुछ चलाकिया तो समझ आने लगी है मुझको
शेखर सिंह
विधाता का लेख
विधाता का लेख
rubichetanshukla 781
प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
Dr.Priya Soni Khare
विजया दशमी की हार्दिक बधाई शुभकामनाएं 🎉🙏
विजया दशमी की हार्दिक बधाई शुभकामनाएं 🎉🙏
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
*
*"बापू जी"*
Shashi kala vyas
शिक्षा बिना जीवन है अधूरा
शिक्षा बिना जीवन है अधूरा
gurudeenverma198
खुदा को ढूँढा दैरो -हरम में
खुदा को ढूँढा दैरो -हरम में
shabina. Naaz
वो कपटी कहलाते हैं !!
वो कपटी कहलाते हैं !!
Ramswaroop Dinkar
■ कामयाबी का नुस्खा...
■ कामयाबी का नुस्खा...
*Author प्रणय प्रभात*
सुरमाई अंखियाँ नशा बढ़ाए
सुरमाई अंखियाँ नशा बढ़ाए
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
"जीवनसाथी राज"
Dr Meenu Poonia
2804. *पूर्णिका*
2804. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
💐प्रेम कौतुक-250💐
💐प्रेम कौतुक-250💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
मौसम नहीं बदलते हैं मन बदलना पड़ता है
मौसम नहीं बदलते हैं मन बदलना पड़ता है
कवि दीपक बवेजा
प्रेम प्रतीक्षा करता है..
प्रेम प्रतीक्षा करता है..
Rashmi Sanjay
*जब तक दंश गुलामी के ,कैसे कह दूँ आजादी है 【गीत 】*
*जब तक दंश गुलामी के ,कैसे कह दूँ आजादी है 【गीत 】*
Ravi Prakash
नारी तेरे रूप अनेक
नारी तेरे रूप अनेक
विजय कुमार अग्रवाल
"दास्तान"
Dr. Kishan tandon kranti
हे मन
हे मन
goutam shaw
आँखों में ख्व़ाब होना , होता बुरा नहीं।।
आँखों में ख्व़ाब होना , होता बुरा नहीं।।
Godambari Negi
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
लाल बहादुर शास्त्री
लाल बहादुर शास्त्री
Kavita Chouhan
करवा चौथ@)
करवा चौथ@)
Vindhya Prakash Mishra
सत्साहित्य सुरुचि उपजाता, दूर भगाता है अज्ञान।
सत्साहित्य सुरुचि उपजाता, दूर भगाता है अज्ञान।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
गैरों से कोई नाराजगी नहीं
गैरों से कोई नाराजगी नहीं
Harminder Kaur
नेह का दीपक
नेह का दीपक
Arti Bhadauria
Loading...