प्रेम दानव
थोड़ा कुछ अनकहा सुन लो आज ,
गर प्रेम-दानव को भीतर के जगा ही चुके हो तुम।
के होंठ तेरे,सिमट लू मेरो में,प्यास थोड़ी कुछ ज्यादा सी लगती है आज की,!!
के बदन तेरा तपता है,थोड़ा कुछ यूं कपता भी है,
कवक्ष पहना ही दु आज इसे,थोड़ी कुछ हठभरी सी,शरारतो का!!
आँखे तेरी,नशे में डूबी सी लगती है,
हो कुछ प्याले का असर शायद,पर थोड़े कुछ मेरे नशे की भी कमी तो ना लगती है!!
घबराहट की बूंदे,माथे पर इंगित हर अगले क्षण को कर रही,
थोड़ी कुछ मुझे भी पहल करने की जरूरत की सी है!!
प्रेम दानव को भीतर के गर जगा ही चुके हो तुम,फिर जगजाहिर इश्क़ को करने में देरी कैसी है??