Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 May 2017 · 4 min read

!! प्रेम की दूरी !!

सुरेन्द्र चले गये हमें छोड़कर ! देह से नहीं संभवतः आत्मा से भी….देह से तो आज भी वो रहता है, करोड़ों रूपये का हवेलीनुमा मकान, सुख सुविधाओं की तमाम वस्तुयें बिखरी सी पड़ी हैं।सुख सुविधाओ की कोई कमी नहीं। घर पर हर एक काम के लिये नौकर चाकर लगे हैं। बागवानी का लिये अलग, कपड़े धुलने के लिये अलग, बर्तन- फटका के लिये अलग, रसोई बनाने के लिये अलग, बच्चों को संभालने वाली आया भी अलग से..”सबके काम के लिये अलग माँ सच कहूँ तो नौकर चाकर लगे हैं….।
मुझे क्या.. ? मैं तो घर की बड़ी बहू बन कर आयी हूं।ऐश औ आराम की जिन्दगी कट रही है। एक ही पुत्र मेरा वह भी अच्छे स्कूल में पढ़ रहा है। मां तुम्हारे ही तो दिये हुये संस्कारों पर मैं चल रही हूँ। सासू मां की हर आज्ञा मानती हूँ, अपने श्वसुर को भी पिता समान मानकर उन्हें इज्जत व सम्मान देती हूँ।
“घर की सारी जिम्मेदारी अच्छे से निभाती हूँ।मान मर्यादा का भी हमेशा ध्यान रखती हूँ मां!
मालती- मां ! “पर वो चले गये….देह से नही पर आत्मा से मुझसे बहुत दूर…इतनी दूर कि शायद अब उन्हें वापस लाना बहुत मुश्किल है।मां से फोन पर बात करके सोना रोने लगती है।
मां बेटी का रोना ना सहन कर पाते सिसकते हुये पूछती हैं कि “बेटी इतना अच्छा वर मिला तुम्हें, अमीर घर की बहू बनी तुम, तमाम सुख सुविधा के साधन तुम्हे दिये गये हैं फिर ऐसी कौन सी वजह है कि तुम कहती जा रही- ” वो चले गये..वो आत्मा चले गये।”- कहकर सिसकते हुये मालती का दर्द सुनने लगती है।
मां मै अच्छे घर की बहू बन गयी, अच्छी मां बन गयी, अच्छी पत्नी भी बन गयी…फिर भी एक कमी सी रह गयी थी जिसे वर्षों बाद आज एहसास कर रही हूँ।
माँ – ” क्या कमी बेटी? नहीं मेरी बेटी में कोई कमी नहीँ है”
मालती-“कोई कमी नही !मां एक कम बाकी रही शायद जिसे नजर अंदाज कर अपनी सारी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रही थी।पूरे घर परिवार की जिम्मेदारी निभाते निभाते,
अपेक्षायें दायित्व पूरी करते करते इतनी व्यस्त हो चली थी कि अपने पति के मन की बात भी ना पढ़ सकी।कि सुरेन्द्र को वह सुख ना दे पायी,अपना आत्मिक प्रेम न दे पायी, ना ही उसे समर्पण दे पायी।
सुरेन्द्र धीरे धीरे मुझसे दूर जा रहा था, उसकी खुशी ,उसकी इच्छा,
उसकी उदासी और उसकी तन्हाई मैं मूर्ख समझ ही ना पायी-(कहते कहते सुबक सुबक कर अपने पति की बातों को याद करके रोने लगती है।)
आज लगता है कि -” हम औरते अक्सर अपने पतियों को दोष देती हैं ” मर्द है तो चार जगह मुंह मारेगा ही।”…पर उतना ही बड़ा एक सच यह भी लगता है मेरे पति का चरित्र पवित्र होने के बावजूद भी वह चला गया और जाता भी क्यूं ना…..।
आखिर कौन सा सुख मैने उसे दे दिया।बाहर से थक हार कर आने के बाद सुरेन्द्र को बस एक प्याली चाय ही तो रख देती थी मैं और फिर घर के कामों में व्यस्त हो जाती थी।
कभी दो मिनट तसल्ली से सुरेन्द्र के पास बैठकर तो शायद एक बार भी उनके मन की बात तक न सुनी।
रात को भी जब हम दोनों बिस्तर पर जाते तो सुरेन्द्र बड़े प्यार और जतन से मुझे अपना बनाना चाहते, तो घर के रोजमर्रा के काम काज निपटाते निपटाते इतना थक जाती कि तुरन्त बिस्तर पर पड़ते ही नींद के आघोश में लिपट जाती।सुरेन्द्र बार बार मुझे प्यार करना चाहता…पर हाय !एक पल को ख्याल नहीं आया कि पति को प्रेम भी चाहिये, वह मेरी बाहों का भी सुख लेना चाहता था।मेरे अधरों पर अपने अधरों का चुम्बन अंकित चाहता था और मै हर बार सुरेन्द्र की बाहों को झटक कर झुंझुलाहट दिखा सो जाती।
सच मानो माँ ! सुरेन्द्र ने कभी भी एक पल को एक शब्द तक नहीं कहा मुझे, ना ही हैवानों की तरह कोई जोर जबरदस्ती करता, ना ही किसी प्रकार का क्रोध करता…बस चुपचाप एक करवट लेकर सो जाता।
सुरेन्द्र अन्दर ही अन्दर जिस घुटन को लेकर जी रहा था,वो अन्दर ही अन्दर उसे मारती जा रही थी।
और शायद आज उसकी इच्छाओं को मारकर मुझे खूब एहसास भी हो रहा है।पर अब सोचती हूं कितनी देर हो चली है…..।
वह लगातार मेरी प्रेम भरी बाहों के लिये तरसता रहा और मै हमेशा मौन रही, ना तो कभी उसके प्रेम का उत्तर वाजिब उत्तर दिया और ना ही कभी एक बार को उसे गले लगाया,
पर फिर भी सुरेन्द्र हंसते हंसते अपने पति होने के सारे फर्ज आज भी भली भाँति निभाते जा रहे हा, किसी प्रकार की कोई कमी ना होने दी।आज भी हम दोनों पति पत्नी अपनी अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभा रहे हैं, लेकिन फिर भी हम दोनों के बीच एक दूरी कायम बनी है–प्रेम की दूरी
सुरेन्द्र ने कभी भी कहा नही, पर उनकी खामोशी माथे की सिकन, चेहरे के पीछे की उदासी की झलक को आज साफगोई से देख पा रही हूँ।सुरेन्द्र देह से तो मेरे पास है पर शायद आत्मा से कही दूर…
कोसों दूर…..चला जा चुका है।
हम दोनों आज भी अपनी जिम्मेदारियां अच्छे से निभा रहे हैं पर जिम्मेदारी निभाते निभाते मै ही शायद उन्हें वक्त देना भूल गयी और सुरेन्द्र दूर जाता गया।
मालती मन ही मन पश्चाताप करते हुये रोती है- और सुरेन्द्र को समर्पित करने का मन बनाती जाती है। पर वह हर हाल में “प्रेम की दूरी” को अब मिटा देना चाहती है।

Language: Hindi
308 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
तेरी मेरी तस्वीर
तेरी मेरी तस्वीर
Neeraj Agarwal
*चुनावी कुंडलिया*
*चुनावी कुंडलिया*
Ravi Prakash
अरमान गिर पड़े थे राहों में
अरमान गिर पड़े थे राहों में
सिद्धार्थ गोरखपुरी
दर्द भरा गीत यहाँ गाया जा सकता है Vinit Singh Shayar
दर्द भरा गीत यहाँ गाया जा सकता है Vinit Singh Shayar
Vinit kumar
एक खाली बर्तन,
एक खाली बर्तन,
नेताम आर सी
पत्रकार
पत्रकार
Kanchan Khanna
मिट्टी का बस एक दिया हूँ
मिट्टी का बस एक दिया हूँ
Chunnu Lal Gupta
अब न तुमसे बात होगी...
अब न तुमसे बात होगी...
डॉ.सीमा अग्रवाल
👌फार्मूला👌
👌फार्मूला👌
*Author प्रणय प्रभात*
हिन्दी पर विचार
हिन्दी पर विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
पाप बढ़ा वसुधा पर भीषण, हस्त कृपाण  कटार  धरो माँ।
पाप बढ़ा वसुधा पर भीषण, हस्त कृपाण कटार धरो माँ।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
बेटियां
बेटियां
Mukesh Kumar Sonkar
कागज मेरा ,कलम मेरी और हर्फ़ तेरा हो
कागज मेरा ,कलम मेरी और हर्फ़ तेरा हो
Shweta Soni
आ रे बादल काले बादल
आ रे बादल काले बादल
goutam shaw
शिकवा
शिकवा
अखिलेश 'अखिल'
Just like a lonely star, I am staying here visible but far.
Just like a lonely star, I am staying here visible but far.
Manisha Manjari
मायका वर्सेज ससुराल
मायका वर्सेज ससुराल
Dr. Pradeep Kumar Sharma
एक बछड़े को देखकर
एक बछड़े को देखकर
Punam Pande
मुश्किल से मुश्किल हालातों से
मुश्किल से मुश्किल हालातों से
Vaishaligoel
"चलना"
Dr. Kishan tandon kranti
और ज़रा-सा ज़ोर लगा
और ज़रा-सा ज़ोर लगा
Shekhar Chandra Mitra
कोई उपहास उड़ाए ...उड़ाने दो
कोई उपहास उड़ाए ...उड़ाने दो
ruby kumari
*नया साल*
*नया साल*
Dushyant Kumar
आंधी है नए गांधी
आंधी है नए गांधी
Sanjay ' शून्य'
“बिरहनी की तड़प”
“बिरहनी की तड़प”
DrLakshman Jha Parimal
इधर उधर की हांकना छोड़िए।
इधर उधर की हांकना छोड़िए।
ओनिका सेतिया 'अनु '
सीरत
सीरत
Shutisha Rajput
कुंती कान्हा से कहा,
कुंती कान्हा से कहा,
Satish Srijan
💐प्रेम कौतुक-241💐
💐प्रेम कौतुक-241💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
जल बचाओ, ना बहाओ।
जल बचाओ, ना बहाओ।
Buddha Prakash
Loading...