प्रीति रीति देख कर
घनाक्षरी
प्रीति रीति देखकर,मीत मीत देखकर,
नैन नक्श देखकर, पीड़ा सह लीजिये।
सावन में प्रीत कर,पावन संगीत भर,
प्रीतम की पाती पढ, लिख व्यथा दीजिये।
लिख दिया अभिलाषा, सब की हो मृदु भाषा
जीने की ही रहे आशा, भरपूर कीजिये।
अँखियों से अँखियों में, झाँकता हूँ पंखियों से,
मनमीत सखियों से,चोरी मत कीजिये।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम