प्रियतमा
प्रियतमा प्रियतमा कहाँ तुम चले गए
लगा के दिल में आग कहाँ सरक गए
मालूम नहीं हमें क्या खता हमारी थी
हमको यूँ छोड़ने की क्यों जिद तुम्हारी थी
कशमकश में हम सनम तुमको तरस गए
लगा के दिल में आग कहाँ सरक गए
हद थी जानेमन इम्तिहान ए मोहब्बत की
हमें भी जिद्द थी कशिश पाने मोहब्बत की
फांसले जो दरमियाँ थे बढाके खिसक गए
लगा के दिल में आग कहाँ सरक गए
कसमें जो खाई थी जन्मो जन्मो वफाई की
बदले में देकर चले गए हमें शाम़ें तन्हाई की
दिल पर दुखों का अंबार ढाहकर परत गए
लगा के दिल में आग कहाँ सरक गए
प्यार जो भाव वियोगी बेदर्दी होता हैं
प्यार जो भाव सिंयोगी हमदर्दी होता है
दिल के अरमान तोड़ कर निकल गए
लगा के दिल में आग कहाँ सरक गए
प्रियतमा प्रियतमा तुम कहाँ चले गए
लगा के दिल में आग कहाँ सरक गए
सुखविंद्र सिंह मनसीरत