प्रितमकभी मिलता नही
**प्रीतम कभी मिलता नहीं (ग़ज़ल)**
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2 2 1 2 – 2 2 1 2 – 2 2 1 2
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तन मन लगी है आग शीतलता नहीं,
मैं क्या करूँ प्रीतम कभी मिलता नहीं।
ये दूध चंदन से बना बटना लगा,
फिर शीत जल से चैन भी आता नहीं।
मनमोहिनी मूरत संगमरमरी सा बदन,
पर चेहरा कोई हमे भाता नहीं।
गौरी नहाती नीर में मल कर अंग सब,
छाया नशा वो प्यार का जाता नहीं।
आये फूलों सी महक तन से सदा,
जो सूंघ ले वो है कहीं रचता नहीं।
है रूप यौवन खूब मनसीरत भरा,
जो देख ले भी तनिक बचता नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)