प्रदूषण
प्रदूषण…
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विषाक्त हैं हवायें,
फिजायें अभिषप्त हुई
जीना मुहाल हर मानव संतप्त है।
मैली हैं नदियाँ और
सुख रहे पोखर
जहरीला मौसम आज जीवन भी त्रस्त है।
खोज रहा राह मानव
जीना है मुश्किल
किन्तु , प्रतिपल अपने आप में ब्यस्त है
प्रदुषित हवायें
और खेत पड़े बंजर
खंजर की खेती करके ही मस्त है।
वायु के संग – संग
मानव विषाक्त हुआ
प्रकृति मिटाने में आज वह आशक्त है
आंखो में जलन और
घुटन भरे जीवन
धुएं में दफन दामन शहर आज पस्त है…….
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
10/11/2017