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28 Nov 2017 · 1 min read

प्रथम प्रेम

मेरी कलम से…
इस बार तुम आओगी
तो गुज़रोगी ही
उस रास्ते से
जहाँ पहली बार तुम्हें देख
आत्मसमर्पण किया था
प्रथम प्रेम में
रास्ते में तुम्हारे पदचिह्न
साक्षी है इस
अत्याज्य बंधन की
जो मुझ तक ही
आकर रूकती थी
हवाएं भी करती है
मुझसे शरारत
खींच लाती है तुम्हारी
कदमों की आहट
वहाँ से यहाँ
जैसे लगता है कि तुम हो
यही कहीं
मैने उस रास्ते पे
बिछा रखा है
शब्दों की पंखुड़िया
सिंदुरी साँझ में नहायी हुई
लिखी है प्रेम कविता
मैने तुम्हारे लिए
पढ़ लेना और
समझ जाना
मैं कविताओं की ओट में
तुम्हे हीे लिखता हूँ
जितना उगता हुआ सूरज सच है
उतना ही सत्य था मेरा प्रेम भी
कभी कभी सोचता हूँ
तुम कितनी नासमझ थी
जो समझ ना पायी
प्रेम में पगी संवेदन को
और मैं कितना अभागा हूँ
निरंतर प्रेम कर के भी
तुझे पा ना सका
इस बार आना तो
मुझे ना ढूंढना
मैं ना हो पाऊँगा
अब कभी
तुम्हारे समक्ष
देह से परे मिलेगी
उस रास्ते में
तुम्हारी प्रतीक्षा करती
मेरी रूह
बस मुस्कुरा देना
एक बार
कर लेना प्रगाढ़ आलिंगन
और मुझे दे देना
अपने प्रेम से मुक्ति!!!
©चंदन सोनी

Language: Hindi
463 Views
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