***प्रकृति कितनी हसीन थी *** ! ***
जंगल था जमीन थी
प्रकृति कितनी हसीन थी ।
वो झरनों का झरना
निर्मल नदियों का बहना
घांट ही घांट – पगडंडियों की बाट
शायद
वह दुनिया बेहतरीन थी।
जंगल था जमीन थी प्रकृति कितनी हसीन थी।
उजाड़ दिए जंगल सारे
खड़े हो गए महल चोबारे
अब तो
प्रकृति गमगीन थी।
जंगल था जमीन भी प्रकृति कितनी हसीन थी।
लुटे तरुओ के घोसले
टूटे परिंदों के हौसले
कहां दिखते वह इठलाते उड़ते पंछी
कितनी की अनुनय खोजबीन थी ।
जंगल था जमीन थी प्रकृति कितने हसीन थी।।
**राजेश व्यास अनुनय**०१/०९/२०२०