प्यार में धूप
जो अपना था, वो सब पराया था,
हम पत्थर से दिल लगाए थे।
जितनी कसमे थी, सब थी शर्मिंदा,
जितने वादे थे, सर झुकाये थे।
जितने आंसू थे, सब थे बेगाने,
जितनी बाते थी सब झूठ बतलाये थे ।
जो साथ घूमे थे , वह था धोखा,
सारे किस्से फर्जी बतलाये थे ।
एक बंजर जमीं के सीने में,
मैने कुछ आसमां उगाए थे ।
सिर्फ दो पल के प्यार कि खातिर,
सुबह से साम तक धूप मे नहाए थे ।
हाशिए पर खड़े हूए है हम,
हमने खुद हाशिए बनाए थे ।
मैं अकेला उदास बैठा था,
सामने कहकहे लगाए थे ।
है गलत उसको बेवफा कहना,
हम कौन सा धुले-धुलाए थे ।
आज कांटो भरा मुकद्दर है,
हमने गुल भी बहुत खिलाए थे ।
– अभिनव यादव