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18 Jul 2019 · 1 min read

इश्क़ जब बेहिसाब हो साहिब।

इश्क़ जब बेहिसाब हो साहिब।
कैसे उस पर नकाब हो साहिब।

लेते क्यों इम्तिहान हो मेरा
जब तुम्ही हर जवाब हो साहिब।

तुमसे होते हैं रात दिन मेरे,
तुम मेरे आफताब हो साहिब।

मेरी आँखें तुम ऐसे पढ़ते हो,
जैसे कोई किताब हो साहिब।

मुस्कुराऊँ बताओ मैं कैसे,
सच भी कोई तो ख्वाब हो साहिब।

बाँटे अहसास भी तो है हमने
कैसे उनका हिसाब हो साहिब।

जब तुम आते हो ऐसा लगता है
कोई महका गुलाब हो साहिब।

सर झुका ‘अर्चना’ का सजदे में
जो भी हो लाजवाब हो साहिब।

01-06-2018
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

4 Likes · 3 Comments · 544 Views
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