प्यारी दादी
परियों से प्यारी है,
यह दादी हमारी है ।
झुक-झुक कर चलती हैं,
नाटक-सा करती हैं ।
तीखी नजरें ऐसी हैं,
बिल्कुल बच्चों जैसी है ।
देखने को तड़पती हैं ,
कहानियां ऐसी रचती हैं ।
दिल में जो बसती हैं ,
नकल मुझ-सा करती हैं ।
खुश ऐसे ही रहती हैं ,
थोड़ा-सा डराती हैं ।
अनुभव हमें सिखाती हैं,
इधर-उधर घुमाती हैं ।
दुनिया से परिचय कराती हैं,
नहीं किसी को सताती हैं ।
दुबली है थोड़ा सहमी है,
हाथों में रखती छड़ी हैं ।
नजरें धूमिल-धूमिल सी,
कानों से थोड़ा बहरी है।
फिर भी रोटी खाती हैं,
दूध के दांत दिखाती हैं ।
हंसती हैं राह तकती हैं ,
रास्ते को भूल जाती हैं ।
ऐसी प्यारी दादी है ,
हम सब उनके आदि हैं ।
खोज अब भी बाकी है ,
आज अंतिम उनकी शादी है ।
#बुध्द प्रकाश