पोंगापंथी सनातन के लिए नासूर
सनातन (हिन्दुत्व) के लिए खतरा बनते अर्द्ध ज्ञानी पंडित।
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आज कल केवल छोला छाप डाक्टर ही नहीं अपितु अर्द्ध ज्ञानी पंडितों की भी हमारे हिन्दू धर्म में भरमार है जो आये दिन पाण्डित्य को शर्मसार करते रहते हैं।
इनके लिए धर्म एक धंधा से ज्यादा और कुछ नहीं है। इनके लिए तो पौकेट भंजन अलख निरंजन।
दोष वैसे इनका भी नहीं है कल के धर्म ज्ञानी आज अपने बच्चों को अंग्रेज बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे ।
धर्म के नाम पर लुट खसोट दिन प्रति दिन बढता हीं जा रहा है परिणाम कल तक सम्मान पाने वाला एक वर्ग आज उपेक्षीत होता जा रहा है। कुछ नीम हकीमों के कारण पुरा समाज हेय दृष्टि से देखा जाने लगा है, किन्तु किसी को भी इस परिवर्तित होते समाजीक दृष्टीकोण से कुछ भी लेना देना नहीं है।
आज पंडित का नाम सुनते ही लोग मूंह सिकोड़ लेते है तो इसमें दोष किसका है ? क्या धर्म के प्रति लोगो का सोच बदल रहा है या फिर बात कुछ और ही है?
एक ही कुण्डली लेकर आप पांच पंडित के पास जायें सबका अलग राय होगा, कोई शनी की महादशा बतायेगा कोई राहु की अन्तर्दशा, कोई काल शर्प योग तो कोई केतु की कु दृष्टि। तो क्या लोच हमारे ज्योतिष शास्त्र में है या इन सभी के अर्द्ध ज्ञानी दिमाग में ? कोई कहता है 25000/- पूजन में लगेगा तो कोई रत्नों का दुकान ही खोल कर बैठा है, कोई 50000/- का खर्च बताता है तो कोई कुछ ।……….?
आपके घर बच्चा पैदा हुआ दिन दशा दिखाने जितने पंड़ित के पास जायेंगे उतने ही धर्मशंकट में फसते जायेंगे। बिना मूल का मूलशान्ति गले पड़ जायेगा ।
उसमें हमारे समाज में दिग् दिगन्तर से चले आ रहे अलग- अलग लोकापचार जिसे समझना टेढी खीर से कदापि कम नहीं।
अब समय आगया है इस दिशा में कुछ सार्थक कदम उठाने का। और यह कदम हमारे ब्राह्मण समाज को ही उठाना पड़ेगा ताकि आज जो हमारे इस धर्मज्ञ्य समाज का अस्तित्व खतरे के निशान के अति समीप खड़ा है वह खतरे का निशाना पार ना करे। हमारे इस समाज में बुद्धिजीवी वर्ग की बहुलता है कमी है तो सिर्फ आपसी एकजुटता, आपसी सामंजस्य, एक दूसरे पर भरोसे की। सम सभी अपनी डफली अपना राग अलापने में लगे हुए हैं किसी और का सुनना, किसी अन्य का कहा मानकर इस दिशा में सार्थक कदम उठाना हमें कतई गवांरा नहीं।
अब समय आ गया है समाज में प्रति दिन गीरते अपने सम्मान की समीक्षा करने की , एकजुट होने की , इन नीम हकीम रूपी अर्द्धज्ञानी पंडितों के पांड़ित्य से हो रहे हमारे सामाजिक खतरे की तरफ भी अपना ध्यान लगाने की, मंथन करना पड़ेगा, आत्मचिंतन की अत्यधिक आवश्यकता है आखिर हमारे समाजिक मान – सम्मान में प्रतिदिन होते इस गिरावट का मुख्य कारण क्या है..?
जहाँ तक मेरी नजर जा रही है या जितना मैं सोच या समझ पा रहा हूँ इन सब का एक ही कारण हमें समझ आ रहा है , वह कारण है अपने धार्मिक ग्रन्थों के प्रति बढती हमारी उदासीनता, अपने वेद पुराणों के प्रति हमारे अंदर की अज्ञानता। जहाँ तक मेरा मानना हैं बच्चों को आप जो चाहे पढायें किन्तु जैसे इस्लामिक घरो में कुरान पढना बच्चों को पढाना अति आवश्यक माना गया है वैसे हमें भी अपने घरों में अपने बच्चों के हृदय में अपने पौराणिक ग्रन्थों को पढने के प्रति जिज्ञासा पैदा करनी पड़ेगी । क्या वेद जानने वाला अंग्रेजी का वक्ता, कम्प्यूटर साईंस का ज्ञाता, विज्ञान का विज्ञाता नहीं हो सकता..?
उसे जो चाहिए पढाईये केवल अपने संस्कार, अपनी संस्कृति के संदर्भ में जानकारी पौढ हो इसलिए पौराणिक पुस्तकों का अनुसरण करना आवश्यक है ।वैसे मैने पहले ही कहा है यह हमारी सोच है , हमारे ब्राह्मण समाज, सनातन धर्मावलंबियों मे एक से एक ज्ञाता, धर्मज्ञ्य धर्माधिकारी बैठे हैं इस वो क्या सोचते है, क्या विचार रखते हैं वह तो वहीं जाने किन्तु सबके सुन्दर व सुखद विचारों से हमारे सनातन धर्म, हिन्दूत्व, सनातन पंथी सभ्यता का सर्वांगीण विकास हो , आपसी सामन्जस्य, वैचारिक समानता, भाईचारा पूर्ण सौहार्द बढे हम तो यही चाहेंगे।।
जय हो ब्राह्मण समाज की।
जय हो सनातन धर्म की।
©®पं.सजीव शुक्ल “सचिन”