आफ़ताब -ऐ -मौसिकी : स्व.मुहम्मद रफ़ी (पुण्य-तिथि पर विशेष )
मौसिक़ी का फ़रिश्ता था वोह,
मौसिक़ी पर रखता था ईमान .
सुरों से खेलता था जिस तरह ,
सुनने वाले हो जाते थे हैरान .
आवाज़ थी करिश्माऐ कुदरत,
शबनम सी नर्म,शोलों सी जवान ,
उसके ज़ज्बातों के समंदर में डूबके ,
निहाल हो जाता था हर इंसान .
सिर्फ उम्दा फनकार ही नहीं था,
वोह थी शख्सियत ही बड़ी महान .
देशभक्ति औ धर्म-निरपेक्षता का प्रतीक ,
सिर्फ मुहोबत था उसका दीन-ओ-ईमान .
ता-कयामत इकबाल बुलंद रहे उसका ,
वोह सुरों का सरताज,रफ़ी था जिसका नाम .