पेट की आग
पेट की आग
मिटा न सका
सरद ऋतु या माघ,
तन पे कपड़े जरजर
ठंढ की बरसात,
एक रोटी को तरसे
ताकन लगे आकाश।
पेट की आग
बुझा न सका
बे मौसम बरसात,
क्या वसंत क्या पतझड़
दोनों एक समान,
तपती धूप या ठंढ कड़ाका
छूधा दिखाये आँख।
पेट की आग
करतब करे
सूली भी चढे
करे जतन दिन रात
एक रोटी को
इंसा तरसे
छुधा मिटे ना आस।
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”