पूज्य पिता की स्मृति में
मेरे पिता श्री श्री प्रेमचंद प्रसाद वर्मा हमेशा मेरे साथ इस स्मृतियों में रहते हैं उनका साथ आप विश्वास सामर्थ व प्रेरणा बनकर मेरे संभल को बढ़ाता है 1 दिन की घटना है मैं ग्रामीण चिकित्सा सेवा से परेशान अत्यंत दुखद वह निराश होकर बैठा था सफलता विहीन लक्ष्मी जीवन जीवन को कुंठित कर रहा था तब मेरे पिता मेरे पास मेरे साथ आए और एक अत्यंत महत्वपूर्ण राय दी उन्होंने कहा ओम नमः शिवाय का मानसिक जप किया करो यह तुम्हें निराशा कुंठा से दूर कर दूर रख तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा मैं हैरान था पाश्चात्य सभ्यता और आधुनिक भौतिक जीवन के मध्य ज्ञानिक युग में अध्यात्म का आगमन हो रहा था मैंने अनुभव किया कि विज्ञान की कसौटी और अध्यात्म की सीढ़ी एक दूसरे के पूरक है मैं अनवरत ओम नमः शिवाय का जाप करने लगा परिस्थितियां अनुकूल होती आध्यात्मिक और मानसिक रूप से मैं आध्यात्मिक अरमान आध्यात्मिक मानसिक और भौतिक रूप से सशक्त होता गया