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27 Feb 2021 · 1 min read

पुराने दिन सुहाने

***पुराने दिन सुहाने***
*******************

कहाँ गए वो दिन पुराने,
याद आते हैं पल सुहाने।

एक कोठरी थी टूटी फूटी,
संग सोते थे पैंद सराहने।

दादी की मिले गोदी लोरी,
माँ के सुनते सुरीले गाने।

पिता की हुंकार सुन कर,
नहीं चलते थे कोई बहाने।

चाची,ताई,बुआ,भरजाई,
चाचा,ताया,भाई व बहने।

बहू,बेटियाँ घर की रौनक,
इज्जतदार थे सभी घराने,

अहम वहम नजर न आए,
गाते मिल कर प्रेम तराने।

चिंता,निंदा पास न आवै,
मस्ती में मस्त थे मस्ताने।

चाँद चाँदनी खूब बिखेरे,
शमां में जलते थे परवाने।

बिना चतुराई,चालाकी के,
तीर लगते ठीक ठिकाने,

शर्म, हया की चारदीवारी,
चोरी नैन मिलाते दीवाने।

घर में ही लगता था मेला,
सब जन बैठें खाना खाने।

प्रेम सुलह से निभते थे,
रिश्तों के बुनते ताने बाने।

सांझे चुल्हे की रोटी खाते,
अपने थे सब,न थे बेगाने।

पल भर में काम निपटते,
द्वेष,ईर्ष्या को भी न जाने।

टोली में खेलते सब होली,
लग जाते पटाखे बजाने।

सुख दुख के सभी साथी,
मुश्किल घड़ी को पहचाने।

मनसीरत को कोई लौटा दे,
वो प्यारे से नजारे नजराने।
*********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
1 Like · 247 Views
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