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11 Dec 2016 · 1 min read

पुरानी क़िताबों से धूल झाड़ते रहना

पुरानी क़िताबों से धूल झाड़ते रहना
काग़ज़ पे लिखके जज़्बात फ़ाड़ते रहना

बदलते ही रहते हैं ख़्याल ज़माने के
गर बुरा कुछ लगे तो मिट्टी डालते रहना

बिखरी है ज़माने की हवाओं से हरसू
मुसीबतों को गर्द सा बस झाड़ते रहना

मात-पिता हैं ज़मीन- औ- आसमाँ ए बंदे
हर पल तुम तैयार उनके वास्ते रहना

खिज़ाओं के मौसम बिखर न जाना कभी
ख़्वाब ज़िंदगी में नये पालते रहना

आलसी लोगों की है आदत ये मशहूर
हो काम कैसा भी कल पर टालते रहना

जिंदगानी ना मिले शायद देकर जान भी
तुम दामन हौसले का ‘सरु’ थामते रहना

1 Comment · 221 Views
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