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9 Dec 2020 · 1 min read

— पुण्य या रोजगार —

इक नदिया का किनारा था
उस पर बैठा इक इंसान
आती जाती मछली को
बड़े मन से निहारता है
हाथ में रखा हुआ दाना
धीरे धीरे उन मछ्लिओं के
मुझ के आगे डालता है
सोचता है , समझता है
यह पानी में रहने वाले
हम सब के आसरे को
आने पर खुश हो जाते हैं
मेरे हाथों से दाना देने पर
मेरे मनन को शांत कर जाते हैं

ठीक दुसरे किनारे
आता है इक.मछुवारा
हाथों में लिए जाल और
लालच से भरा हाथ में दाना
फैला देता है जाल.अपना
फसा लेता है बेजुबान को
मन को खुश कर के
भरके मछ्लिओं को अपने
झोले में गाता हुआ तराना
तड़प तड़प के मर गयी बेचारी
न मिला दाना न ठिकाना

एक कर रहा है पुण्य का काम
दूसरा जुटा रहा है रोजगार
कहना बड़ा मुश्किल सा लगा
न जाने किस का था कौन सा काम
कैसी लीला रची राम ने
कैसे भेजू सब को यह पैगाम
पुण्य को बड़ा कहूँ या कहूँ रोजी को
उप्पर वाला ही चला रहा है
सब के बिगड़े हुए सब काम !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
1 Comment · 214 Views
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