पुण्य कर्म – एक विचार
पुण्य कर्म वे कर्म हैं जो सर्दिचतन की प्रक्रिया से होकर गुजरते हैं सदिचार के रूप में परिणित होकर सत्कर्म की ओर प्रस्थित करते हैं | ये कर्म मनुष्य के मन और आत्मा को पवित्र करने वाले होते हैं | इन कर्मों का किसी दूसरे के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता अपितु ये दूसरों के जीवन को | भी सही दिशा में ले जाने को प्रेरित करते हैं | इस प्रकार के कर्म वर्तमान! सामाजिक व्यवस्था में दिन – प्रतिदिन कमतर होते जा रहे हैं |
मानव की सोच व लालसा ने इसे बहुत हद तक प्रभावित किया है | यदि कुछ सत्कर्म किये भी जाते हैं तो वे भी प्रतिफल की आशा से | पुण्य कर्म वर्तमान पीढ़ी को तो पावन और सुखी करते ही हैं साथ ही आने वाली भी इन सत्कर्मों का पूरा — पूरा लाभ उठाती है | पुण्य कर्म परिवार, समाज समुदाय के साथ – साथ प्रकृति को भी आनंदित करते हैं | ये कर्म किसी भी राष्ट्र की धरोहर होते हैं और मानव को भष्ट आचरण से बचा सकते हैं | ये| कर्म किसी भी धर्म विशेष को एक विशेष आसन पर आसीन करते हैं |
* दया धर्म का मूल है , पाप मूल अभिमान *
इस पंक्ति को सदा मन में बसाना चाहिए और पुण्य कर्मों की ओर अग्रसर
होते रहना चाहिए |
पुण्य कर्म तभी पुण्य हो सकते हैं जब वे पवित्र मन , पवित्र के साथ बिना किसी अहं या अभिमान के संपन्न किये जाते हैं | पुण्य कर्म करते समय जन कल्याण व धर्म कल्याण के साथ-साथ राष्ट्र कल्याण की भावना सर्वोपरि होनी चाहिए | दिखावे की भावना का सर्वथा त्याग पुण्य कर्म किये जाने चाहिए | पुण्य कर्म के बदले किसी प्रकार के
की अपेक्षा अपने मन में नहीं रखनी चाहिए | पुण्य कर्मों का प्रतिफल|
हमेशा सद्कर्म ही होता है ये सर्वविदित है | अतः कोमल मन, शुद्ध आत्मा के साथ इन कर्मों को संपन्न किया जाना चाहिए |
श्रीमद् भगवह्ीता में श्री कृष्ण बहुत ही सुन्दर शब्दों में इस बात को समझाते हुए कहते हैं “ पुण्य कर्म इसलिए करने चाहिए क्योंकि ये मनुष्य को एवं उसकी भावनाओं को पवित्र करते हैं जिसके परिणामस्वरूप सभी देव उसका पुण्यफल प्राप्त कर उसे अपने भक्त को आशीर्वाद स्वरूप वापस कर देते हैं इससे देवगण और मनुष्य एक दूसरे के उत्कर्ष के लिए प्रयास करते हैं जो कि मनुष्य को मोक्ष द्वार की ओर प्रस्थित करता है। “
सदूकर्मों को एवं सभी अन्य कर्मों को परमात्मा को
अर्पित कर कर्म करते रहें और यह न सोचें कि आप कुछ कर रहे हैं अपितु यह सोच कर कर्म करें कि जो कुछ भी हो रहा है वह उस परमपूज्य परमात्मा का आदेश है | सद्दिचार हमेशा अच्छे परिणाम ही देते हैं इसमें संदेह नहीं है अतः सद्कर्म करते रहें और स्वयं के उद्धार की ओर अग्रसर होते रहें |