पुकारती भारती
अंग -अंग काट दिये,
प्रांत -प्रांत बांट दिये,
शूल चित्त में चुभे हैं,
रोय रही भारती ।
केसरी हरे का खेल,
कोई भी करे न मेल,
श्वेत अब कहीं नहीं,
देख रही भारती ।
छलते सुत आज हैं,
मौन क्रांति साज हैं,
वीर पुत्र ढूंढ़ रही,
भारती पुकारती ।
भूमि रंगी लाल रंग,
तार – तार हुए अंग,
पुत्र शत्रु बन गये,
पीर सहे भारती ।