पीर परायी जानो रे -व्यंग्य वार्ता
पीर परायी जानो रे।
दो मित्र ,चाय स्टाल पर मिलते हैं। चाय की चुस्कियों के मध्य गुफ्तगू शुरू हुई ।
प्रवीण -अंबर भाई, आजकल राष्ट्र में कैसा आतंकवाद फैल रहा है? अंबर -क्या प्रवीण भाई? आतंकवाद पर लगाम तो सरकार ने पहले ही लगा दी है ,किंतु ,अब कौन से आतंकवाद से राष्ट्र पीड़ित है?
प्रवीण भाई -अंम्बर भाई, जम्मू कश्मीर का आतंकवाद पाक से राष्ट्र में फैला था, जिसे हमारी सरकार ने बखूबी दूर किया। किंतु, क्षेत्रीय आतंकवाद से कैसे निपटा जाए यह कभी सोचा है आपने ?
अंबर- मित्र, खुलकर विस्तार से कहिए ,पहेलियां ना बुझाइये,। राज्य में कौन सा आतंकवाद सर उठा रहा है ?
प्रवीण- मित्र यह आतंकवाद न धार्मिक उन्माद का है,न देशद्रोह का यह सामाजिक समस्याओं का आतंक है ।बेरोजगारी ,बेगारी, अपराध, यौन हिंसा से संबंधित है।
अंबर भाई- अच्छा, किंतु, यह आतंकवाद नहीं है ।
प्रवीण भाई- अम्बर भाई! इंसान जब बेरोजगार होता है, तो उसकी औकात कुत्ते से भी बदतर होती है ।वह न घर का होता है ना घाट का। इंसान,अपनी इंसानियत भूल जाता है ।पेट की भूख उसे अपराध करने पर विवश कर देती है किंतु कुछ अपराधी पेशेवर होते हैं, उनका संगठित गिरोह होता है वे कब अमानवीय कृत्य कर जाते हैं कि, सारा देश उनकी क्रूरता से हिल जाता है।मैं इसी आतंकवाद की बात कर रहा हूं।
अंबर भाई- सारा देश आज जिस क्रूर तम अपराध का साक्षी बना है महिला चिकित्सक के साथ जो अमानवीय क्रूरतम घटना हुई, मैं उस बारे में बात कर रहा हूँ।
प्रवीण -हां भाई हां! सारा देश स्तब्धहै। मूक है क्लांत है , बहू बेटियों की अनसुनी सिसकियां देश को सुनाई दे रही हैं।यह आतंकवाद से घातक आतंक है, जो आंतरिक है ,और देश की कानून व्यवस्था ,न्याय व्यवस्था को पंगु बनाए हुए है।आतंकी आने की पूर्व सूचना खुफिया विभाग दे देता है, किंतु खूंखार भेड़िए अचानक अपना शिकार कर घटना को अंजाम देकर साफ बच निकलते हैं।जब पकड़े जाते है तो सरकारी मेहमान बनकर इनकी सुरक्षा की जाती है ।पालन पोषण होता है ।क्षेत्रीय आतंकियों की पूर्व सूचना कभी मिल सकी है क्या? क्या कभी घटना से पूर्व रोकथाम हो सकती है क्या ?
अंबर भाई- वाकई आंतरिक आतंकवाद मानवता के विरुद्ध रचा गया षड्यंत्र है, जिससे सारा देश आहत होता है ।बलात्कार गैंगरेप जैसी घटनाएं मानसिक विकृति का प्रतीक है।इन्हें पूर्व मे ही रोका जाना चाहिए। माता-पिता व समाज को पूर्व में ही अपने बच्चों को बच्चों के मनोविकार को समझ कर सद राह पर लाने का प्रयत्न करना चाहिए। धार्मिक गुरुओं, शिक्षकों बड़े बुजुर्गों की राय लेकर उन्हें रास्ते पर लाने का प्रयास करना चाहिए। ना कि पुत्रों के अपराध को ढांक कर उसे ढाल बनाकर अपराधी का संरक्षण करना चाहिए। इससे अपराध में बढ़ोतरी होती है ।अपराधी को बचाने के लिए गैरकानूनी दबाव का प्रयोग नहीं करना चाहिए, नाही राजनीतिक संरक्षण देना चाहिए। रोजगार के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए ,इससे मनुष्य जिम्मेदार वह सुसंस्कृत नागरिक बनता है। परिवार की जिम्मेदारियां अच्छे से निभाता है।
अच्छा भाई आज इतना ही, फिर, दोबारा कल मिलेंगे यह कहकर दोनों मित्रों ने विदा ली।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव,
वरिष्ठ परामर्श दाता,
जिला चिकित्सालय सीतापुर।