पिता और पुत्री संबंध ( मेरे श्रद्धेय स्व पिता को समर्पित)
पुत्री में पिता की जान होती है ,
पुत्री पिता का सम्मान होती है ।
खुश होता है पिता पुत्री को बढ़ता देख ,
चूंकि पुत्री पिता का अरमान होती है ।
पुत्री के सुख और खुशी के लिए ,
पिता हर कुर्बानी करने को तत्पर रहता है ।
क्योंकि पुत्री पिता का ख्वाब होती है ।
पुत्री को उसके ख्वाबों की मंजिल तक पहुंचाने ,
में पिता की भूमिका सबसे अहम होती है।
पुत्री चाहे जितनी बड़ी हो जाए ,
पिता के लिए उसकी नन्ही सी गुड़िया ही रहती है ।
पुत्री की नजर में उसका पिता एक आदर्श व्यक्ति ,
एक नायक होता है ।
इसीलिए अपने पति में भी पुत्री अपने पिता को
देखती है ।
डोली गर उठे पुत्री की ,तो घर में सबसे अधिक ,
आंखें पिता की भीगी होती है ।
कभी किसी पुत्री से पिता का साया मत छीनना ,
तू भगवान !
पिता के बिना पुत्री की जिंदगी सूनी और
उजाड़ हो जाती है ।
भले ही कितने भी रिश्ते हो उसकी पुत्री के ,
जीवन के गुलिस्तान में ।
मगर पिता की कमी कभी पूरी नहीं होती है ।