पारस कहु ले लान के…. छतीसगढ़ी दोहे
लोकतंत्र के नाम ले ,पार डरो गोहार
कुकुर ओतके भोकही ,जतके चाबी डार
लहसुन मिर्चा टोटका,मिझरा डाल बघार
जतका झन ला नेवते,चांउर पुरत निमार
लोकतंत्र सुन्दर बिगुल,बजवइय्या हे कोन
अड़सठ-सत्तर साल के ,गणतंत्र हवे मौन
पारस कहु ले लान के ,छुआ दो एखर गोड़
माटी बनतिस सोन कस,गुन लोहा के छोड़
सुशील यादव
26.1.2017