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27 Sep 2020 · 1 min read

पाप के गड्ढ़े में सीधा जा रहा है आदमी

पाप के गड्ढ़े में सीधा जा रहा है आदमी
ख़ुद को धोका रोज़ देता जा रहा है आदमी

कर के आँखें बन्द चलता रौशनी में आजकल
ख़ुद को ही हर बार छलता जा रहा है आदमी

हैं न ख़ुशियाँ रंजोग़म हैं और कुछ मज़बूरियाँ
ज़िन्दगी का बोझ ढोता जा रहा है आदमी

आज अच्छा है नहीं पर फ़िक़्र है कल की उसे
ख़ौफ़े-मुश्किल से ही डरता जा रहा है आदमी

बाँटता है दूसरों को दर्द भी हँसते हुये
कर के ऐसा ख़ुद ही बँटता जा रहा है आदमी

है नहीं अहसास कोई मर चुके जज़्बात हैं
पत्थरों जैसा ही होता जा रहा है आदमी

उठ रही हैं बिल्डिंगें पर आदमी है गिर रहा
और ओछे काम करता जा रहा है आदमी

इस जहाँ में हैं नहीं इन्सान सारे एक से
जो बुरा अच्छों को ढकता जा रहा है आदमी

आदमी को आदमी से प्यार है “आनन्द” कब
आदमी का क़त्ल करता जा रहा है आदमी
-डॉ आनन्द किशोर

1 Like · 1 Comment · 285 Views
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