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4 Oct 2020 · 1 min read

लालचों की चाह

सोचते थे हम रखा क्या जाए भाई का हिसाब
आज उसने कर लिया है पाई-पाई का हिसाब

एक मां की जान ले ली रिश्वती माहौल ने
चल रहा था नर्स आशा और दाई का हिसाब

किस क़दर मुश्किल हुई माँ बाप की अब देखभाल
बीवियां जब मांगती हों पाई – पाई का हिसाब

सात जन्मों में नहीं होगा यही करिए यकीन
आप करने तो चले हो आज माई का हिसाब

पास कुछ बचता नहीं है, सर उठाता है उधार
अब महाजन ही बताएगा कमाई का हिसाब

पांच सालों बाद अब फिर आ गया सर पर चुनाव
हो नहीं पाया यह गडढे और खाई का हिसाब

अब दिहाड़ी को छुपा सकता नहीं कोई गरीब
इस जहां में है नहीं काली कमाई का हिसाब

कब? कहाँ? कैसे? मिले इसका नहीं कोई शुमार
उंगलियों पर है लिखा लेकिन जुदाई का हिसाब

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