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20 May 2017 · 1 min read

पांव में

जिंदगी जलने लगी है इन सुखों की छांव में।
चैनो-अमन हम छोड़ आए अपने बूढ़े गांव में।

शहर में सुख सब मिले पर मन परेशा ही रहा।
गांव में गम थे तो लेकिन जैसे पानी नाव में।

हमने वफा के नाम पर है सीख ली आवारगी।
कौन कब आकर फँसे रहते थे बस इस दाव में।।

कर गुजरना अपनी फितरत थी तो सब करते रहे।
काम अच्छे या बुरे आकर के झूठे ताव में।

हम सुधरने से लगे हैं बेशरम कुछ रोज से।
कोई साँकल रोकती है पांव बांधे पांव में।।

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