Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Aug 2017 · 2 min read

पवित्र साध्य – प्रेम

” पवित्र साध्य- प्रेम ”
—————————-

रहिमन धागा प्रेम का ,मत तोड़ो चटकाय |
टूटे से फिर ना जुड़े ,जुड़े गाँठ परि जाय ||
—————————————————
उक्त दोहे के माध्यम से रहीम जी ने प्रेम की पराकाष्ठा, महत्व और इसके विशाल स्वरूप को बताने का प्रयास किया है | प्रेम क्या है ? प्रेम का वास्तविक स्वरूप क्या है ? प्रेम की महत्ता क्या है ? प्रेम की आत्मिक प्रबलता और सहजता कितनी है ? इन सभी प्रश्नों को समाहित करता हुआ ये दोहा न केवल प्रेम की गूढ़तम रहस्यात्मक अभिव्यक्ति को उजागर करता है , बल्कि प्रेम की गहन जड़ों और उसकी दार्शनिक और भावनात्मक अभिव्यक्ति को भी बताता है | प्रेम , वह भावनात्मक अभिव्यक्ति है जो कि सत्व गुण से परिपूर्ण है तथा त्याग ,समर्पण, विश्वास , निष्ठा जैसे मानवीय गुणों को समाहित किए हुए है | इन्हीं गुणों के कारण प्रेम एक सशक्त मानवीय अनुभूति है ,जो हमेशा निर्मल और सुखद एहसास का अंकुर प्रस्फुटित करता है | इसलिए जरूरी है कि इस अंकुर का पोषण हम पूरी निष्ठा ,समर्पण और विश्वास के साथ करें , ताकि प्रेम जैसे पवित्र साध्य को हम प्राप्त कर सके और सहेज सकें | क्यों कि प्रेम, एहसास के नाजुक धागों से बंधा हुआ होता है ,जिन्हें त्याग , समर्पण , निष्ठा और विश्वास जैसे धागों से मजबूती मिलती है | यदि इन भावों की कमी या इनके विपरीत यथा – अविश्वास , स्वार्थ ,धोखा जैसे भावों का उद्भव होता है ,तो यह प्रेम का धागा टूट जाता है | जिस प्रकार कोई धागा टूट जाने पर उसे पुन: जोड़ने पड़ गाँठ पड़ जाती है , उसी तरह प्रेम भी एक बार टूट जाने या खत्म हो जाने पर भावों में आशंका और मलीनता आ जाती है , जो कि प्रेम जैसे पवित्र साध्य के लिए घातक है ,क्यों कि वहाँ विश्वास, समर्पण, त्याग और निष्ठा धूमिल हो जाती है | इसी धूमिलता के कारण दिल के आसमान में कोहरा छा जाता है ,जिसके पार देखना असंभव हो जाता है | अत: यह जरूरी है कि प्रेम को उसके यथार्थ और उज्ज्वल स्वरूप में बनाए रखने के लिए पवित्र साध्यों को अपनाना एक अनिवार्य और महत्वपूर्ण पक्ष है |
—————————————————–
— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”

Language: Hindi
Tag: लेख
600 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
जीवन में सफलता पाने के लिए तीन गुरु जरूरी हैं:
जीवन में सफलता पाने के लिए तीन गुरु जरूरी हैं:
Sidhartha Mishra
आई लो बरसात है, मौसम में आह्लाद (कुंडलिया)
आई लो बरसात है, मौसम में आह्लाद (कुंडलिया)
Ravi Prakash
पूछूँगा मैं राम से,
पूछूँगा मैं राम से,
sushil sarna
मैंने इन आंखों से ज़माने को संभालते देखा है
मैंने इन आंखों से ज़माने को संभालते देखा है
Phool gufran
ज़रूरत के तकाज़ो पर
ज़रूरत के तकाज़ो पर
Dr fauzia Naseem shad
दीवानगी
दीवानगी
Shyam Sundar Subramanian
** फितरत **
** फितरत **
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
करो खुद पर यकीं
करो खुद पर यकीं
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
स्वार्थ सिद्धि उन्मुक्त
स्वार्थ सिद्धि उन्मुक्त
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
सुनी चेतना की नहीं,
सुनी चेतना की नहीं,
सत्यम प्रकाश 'ऋतुपर्ण'
तूफां से लड़ता वही
तूफां से लड़ता वही
Satish Srijan
मोह माया ये ज़िंदगी सब फ़ँस गए इसके जाल में !
मोह माया ये ज़िंदगी सब फ़ँस गए इसके जाल में !
Neelam Chaudhary
गूँज उठा सर्व ब्रह्माण्ड में वंदेमातरम का नारा।
गूँज उठा सर्व ब्रह्माण्ड में वंदेमातरम का नारा।
Neelam Sharma
सामाजिक न्याय
सामाजिक न्याय
Shekhar Chandra Mitra
धनतेरस जुआ कदापि न खेलें
धनतेरस जुआ कदापि न खेलें
कवि रमेशराज
विरह के दु:ख में रो के सिर्फ़ आहें भरते हैं
विरह के दु:ख में रो के सिर्फ़ आहें भरते हैं
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
सोशल मीडिया
सोशल मीडिया
Surinder blackpen
संदेश बिन विधा
संदेश बिन विधा
Mahender Singh Manu
विद्यार्थी को तनाव थका देता है पढ़ाई नही थकाती
विद्यार्थी को तनाव थका देता है पढ़ाई नही थकाती
पूर्वार्थ
*
*"नमामि देवी नर्मदे"*
Shashi kala vyas
ग़ज़ल सगीर
ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
जब मां भारत के सड़कों पर निकलता हूं और उस पर जो हमे भयानक गड
जब मां भारत के सड़कों पर निकलता हूं और उस पर जो हमे भयानक गड
Rj Anand Prajapati
उस रावण को मारो ना
उस रावण को मारो ना
VINOD CHAUHAN
ईश्वर से साक्षात्कार कराता है संगीत
ईश्वर से साक्षात्कार कराता है संगीत
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
जाते हो.....❤️
जाते हो.....❤️
Srishty Bansal
👌👌👌
👌👌👌
*Author प्रणय प्रभात*
कुछ तो तुझ से मेरा राब्ता रहा होगा।
कुछ तो तुझ से मेरा राब्ता रहा होगा।
Ahtesham Ahmad
कविता-
कविता- "हम न तो कभी हमसफ़र थे"
Dr Tabassum Jahan
एक तो गोरे-गोरे हाथ,
एक तो गोरे-गोरे हाथ,
SURYA PRAKASH SHARMA
तूं मुझे एक वक्त बता दें....
तूं मुझे एक वक्त बता दें....
Keshav kishor Kumar
Loading...